चाणक्य और मोदी
चाणक्य ने पहली बार जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर हमला किया (मतलब उनकी सेना ने) तो बुरी तरह मुंह की खायी और बा-मुश्किल जान बचाकर भागे। भागते भागते चाणक्य भी एक बुढ़िया की झोपडी में आकर छुप गए। वह रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी। दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरमा गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके गरमा गरम घी भी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था, जल गया, जल गया। दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमा गरम खिचड़ी के बीच में अंगुलियां डाल दी थीं। दादी बोली, 'तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, अरे गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है'। चाणक्य बाहर निकल आए, बुढ़िया के पांव छूए और बोले, 'आप सही कहती हैं कि, मैं मूर्ख ही था तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़...