विक्रमादित्य के नवरत्न
नवरत्नों को रखने की परंपरा महान सम्राट विक्रमादित्य से ही शुरू हुई है जिसे बाद में मुग़ल बादशाह अकबर ने भी अपनाया था। परंतु हमें जो इतिहास पढ़ाया गया उसमें विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों ने अकबर के ही नव रत्नों का माहिमा मण्डन हर स्थान पे किया। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम शायद ही कुछ लोग जानते होंगे विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि :~ “ धन्वन्तरिः क्षपणकोऽमरसिंहः शंकूवेताळभट्टघटकर्परकालिदासाः। ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेस्सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥ ” विक्रमादित्य के नवरत्नों में धन्वंतरि , क्षपणक , अमरसिंह , शंकु , बेताल भट्ट , घटखर्पर , कालिदास , वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं। इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान , श्रेष्ठ कवि , गणित के प्रकांड विद्वान , ज्योतिषी और विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे। 1– धन्वन्तरि :~ आयुर्वेद साहित्य में प्रथम धन्वंतरि