विक्रमादित्य के नवरत्न
नवरत्नों को रखने की परंपरा महान सम्राट विक्रमादित्य से ही शुरू हुई है जिसे बाद में मुग़ल बादशाह अकबर ने भी अपनाया था।
परंतु हमें जो इतिहास पढ़ाया गया उसमें विशिष्ट श्रेणी के इतिहासकारों ने अकबर के ही नव रत्नों का माहिमा मण्डन हर स्थान पे किया।सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों के नाम शायद ही कुछ लोग जानते होंगे
विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि :~
“धन्वन्तरिः क्षपणकोऽमरसिंहः शंकूवेताळभट्टघटकर्परकालिदासाः।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेस्सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥”
विक्रमादित्य के नवरत्नों में धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि कहे जाते हैं।
इन नवरत्नों में उच्च कोटि के विद्वान, श्रेष्ठ कवि, गणित के प्रकांड विद्वान, ज्योतिषी और विज्ञान के विशेषज्ञ आदि सम्मिलित थे।
1–धन्वन्तरि :~
आयुर्वेद साहित्य में प्रथम धन्वंतरि आदि वैद्य माने जाते हैं। शल्य तंत्र के प्रवर्तक को धन्वंतरि कहा जाता था। इसी कारण शल्यचिकित्सकों का संप्रदाय धन्वंतरि कहलाता था। धन्वंतरि द्वारा लिखित ग्रंथों के ये नाम मिलते हैं- रोग निदान, वैद्य चिंतामणि, विद्याप्रकाश चिकित्सा, धन्वंतरि निघण्टु, वैद्यक भास्करोदय तथा चिकित्सा सार संग्रह।
आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।
2– क्षपणक :~
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे। “मुद्राराक्षस” में भी क्षपणक के वेश में गुप्तचरों की स्थिति कही गई है। इससेएक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषदका गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ सम्मिलित हैं
3–अमरसिंह :~
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाताहै। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्तिचरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों कोपढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।
4–शंकु :~
नीति शास्त्र व रसाचार्य थे। इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। आज भी वहपुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।
5–वेतालभट्ट :~
प्राचीनकाल में भट्ट अथवा भट्टारक, उपाधि पंडितों की होती थी। वेताल भट्ट से तात्पर्य है भूत-प्रेत-पिशाच साधना में प्रवीण व्यक् विक्रमऔर वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राटविक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।
6–घटखर्पर :~
साहित्यकार थे , मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े सेपानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया, इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रासका वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है। 7–कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवलस्वरूप निरूपित किया है।
कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के प्रचंड धनी थे, वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोईउन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानीजाती है।
8–वराहमिहिर :~
वराहमिहिर ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं।
वृहज्जातक, समाससंहिता, लघुजातक, पञ्चसिद्धांतिका, विवाह-पटल, योगयात्रा, वृहत्यात्रा, गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समाससंहिता’, ‘विवाह पटल’, आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।
9–वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। वररुचि - व्याकरण के विद्वान व कवियों में श्रेष्ठ शास्त्रीयसंगीत के भी जानकर रहे।
कथासरित्सागर के अनुसार वररुचि का दूसरा नाम कात्यायन था। ये आरंभ से ही तीक्ष्ण बुद्धि के थे। एक बार सुनी बात ये उसी समयज्यों-की-त्यों कह देते थे।एक समय व्याडि और इन्द्रदत्त नामक विद्वान इनके यहां आए।व्याडि ने प्रातिशाख्य का पाठ किया,इन्होंने इसेवैसे का वैसा ही दुहरा दिया,इनसे प्रभावित हो वे इन्हें पाटलिपुत्र ले गए|.| ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनायें हैं
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