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Showing posts from January, 2024

युद्ध

  युद्ध   युद्ध चाहे सीमाओं पर देश के दुश्मनों के खिलाफ हो या देश के अंदर समाज में छिपे या खुले दुश्मन के खिलाफ इन दोनों ही युद्धों में हालात हर समय आपके फेबर में ही होंगे ये संभव ही नही  ये काम फोन पर वीडियो गेम  खेलने जैसा आसन और सुविधाजनक नही होता जमीनी युद्ध इतना जटिल होता है की इसमें एक से एक अनुभवी और प्रोफेशनल इंसान भी कुछ समय के लिए गच्चा खा सकता है या हालात विपरीत हो सकते है  ये काम आम समाज और नागरिको की सोच से बाहर का विषय होता है अतः समझदार जिम्मेदार लोग अगर इस प्रक्रिया में डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप में शामिल है तो वे पल पल अपने विचार नही बदलते वे अपने मकसद के प्रति सौ प्रतिशत समर्पित होते हुए सकारात्मक और नकारात्मक दोनों माहौल में अपना धैर्य और आत्मविश्वास कभी नही खोते  हालात चाहे जितने भी नकारात्मक हो जाए अपने विचार और आचरण पर स्थिर रहते निराशा , नकारात्मकता , अधीरता धारण करना  , किसी भी युद्ध या संघर्ष के दौरान या शुरू होने से पहले ही हार की और पहला और मजबूत कदम होती है आज हम एक धर्म युद्ध के बीच में है इस दौरान रोज रोज हर पल सेनापति को कटघरे में खड़ा करना या उ

Congress and Judiciary

 Do you know? In 1973, Indira Gandhi appointed Justice A.N. Ray as the Chief Justice of India, that too when the list of senior judges like Justice JM Shelat, KS Hegde & AN Grover were in front of her. Ultimately all 3 judges resigned coz of resentment. After this, Congress replied in the Parliament, "It's the job of the govt to decide whom to keep as CJI & whom to not & we'll appoint only those who are close to our ideology" And today the same people talk about the independence of judiciary? In 1975, Justice Jagmohan Sinha had to deliver a verdict. The verdict was in the case of electoral corruption of Raj Narayan vs Indira Gandhi. He gets a phone call saying, 'If you passed the verdict against Indira, then tell your wife not to fast for Karvachauth this year' To which Justice Sinha comfortably replied, 'Fortunately my wife passed away 2 months back' Justice Sinha then gave a historic judgment, which is still seen as an example. This shook

Why Hindu temples r controlled by Government?

  In 1925 British brought madras religious and charitable endowments Act n took over all religious places of all religion When Muslim n Christian objected they released Church n Mosque but not temple Gandhi n Nehru never opposed it n Hindu kept sleeping. India got freedom in 1947 n we got our constitution in 1950 that gave us article 26 That say govt can’t interfere in religious practice of any religion n Hindu got their temple back.    But crooked Congress didn’t stop, they brought Hindu religious n charitable endowments Act 1951 What this act says: -State can make law n take over only temples (No mosque n Church) -They can appoint any administrator from any religion as Chairman or Manager of temple -They can take money of temple n use it for any purpose - They can sell land of temple n use that money from any purpose  -They can interfere in temple traditions Congress ruled Tamilnadu used this act n brought its TN religious and charitable endowments Act 1959 n took over all 35,000 tem

भारतीय सिने जगत - एक योजनाबद्ध षड्यंत्र

  बॉबी देओल एक इंटरव्यू में बताते हैं कि 15-16 मेकर्स के साथ बात चल रही थी, फिर अचानक से धीरे धीरे सब पीछे हटते गए और अंत में उनके पास काम नहीं रहा! यह एक बानगी है कि आखिर कैसे एक के बाद एक अति लोकप्रिय कलाकार जैसे गोविंदा, सनी देओल, बॉबी देओल धीरे धीरे बेरोजगार होते चले गए, या यह कह लीजिये कि किसी के इशारे पर बेरोजगार कर दिए गए और फिर खान तिकड़ी का उदय होता है! जिस बात को बॉबी देओल धीरे से कहते हैं उसी बात को गोविंदा आश्चर्य के साथ कहते हैं! गोविंदा का कोई भी इंटरव्यू उठा लीजिये उन्हें समझ ही नहीं आता है कि आखिर उनके स्टारडम को कौन खा गया? उनके इंटरव्यू में खीझ साफ़ दिखती है! इन सबसे पृथक सनी देओल ने इस विषय पर गरिमामयी मौन धारण कर लिया और कभी कुछ नहीं बोला! बड़ी पीड़ा से कई बार उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कोई भी बड़ी अभिनेत्री उनके साथ काम नहीं करना चाहती है! सनी देओल फिल्म इंडस्ट्री के अकेले ऐसे कलाकार थे जिनके अंदर किसी स्टार का भय नहीं था, वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से विचलित नहीं होते थे वरन दो कदम आगे बढ़कर चुनौती स्वीकार करते थे! जब आमिर खान के सामने कोई फिल्म रिलीज़ करने का सहस

भारतीय साम्यवादियों का इतिहास

  देखा की आज बहुत सारे कम्युनिस्ट नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती मना रहे हैं... याद कर रहे हैं... इन दोमुहे साँपों के बात पे नहीं जाना... इनकी असलियत यहाँ पढ़िए...  भारतीय कम्युनिस्ट के कर्म जो सबको पता होना चाहिए... भारत में वामपंथी पार्टी नहीं थी, भारत में वामपन्थियों का 1917 के पहले कोई इतिहास नहीं है। "रूस में त्सारयुग के पतन के बाद भारत में विदेशी हुकूमत के नौकरशाही का पतन के युग की शुरुवात हो चुकी है", 1917 में कलकत्ता में छपी एक राष्ट्रवादी पत्रिका दैनिक बसुमति में एक लेख इस शीर्षक के साथ आया था।.." अब हमारा समय आ रहा है, भारत भी मुक्त होगा, भारत के बेटों को सही और न्याय के लिए खड़ा होना होगा जैसा कि रूसियों ने किया है ये Home Rule League के पर्चों में लिखा था जिसका शीर्षक था "Lessons from Russia", ये पर्चा मद्रास से उसी समय 1917 में प्रकाशित किया। इसी के साथ रूस से प्रभावित एक नयी खेप का भारत में जन्म हुआ जिसका नाम था "communism"... यूरोप में जन्मे कम्युनिज्म के सिद्धांतों से प्रभवित ये गुट यूरोप की तरफ भाग खड़ा हुआ और उसने उस ग्रुप से हाथ म

द स्टोरी ऑफ़ जीरो

भारतीय दर्शन में शून्य और शून्यवाद का बहुत महत्व है। शून्य के आविष्कार को लेकर पश्चिमी जगत के विद्वान ये मानने को तैयार नहीं थे कि शून्य के बारे में पूरब के लोगों को जानकारी थी। लेकिन सच ये है कि न केवल अंकों के मामले में विश्व, भारत का ऋणी है, बल्कि भारत ने अंकों के अलावा शून्य की खोज की। शून्य     का अपने आप में महत्व शून्य है। लेकिन ये शून्य का चमत्कार है कि यह एक से दस, दस से हजार, हजार से लाख, करोड़ कुछ भी बना सकता है। शून्य की खासियत है कि इसे किसी संख्या से गुणा करें अथवा भाग दें, परिणाम शून्य ही रहता है। भारत का 'शून्य' अरब जगत में 'सिफर'    (अर्थ: खाली) नाम से प्रचलित हुआ फिर लैटिन, इटैलियन, फ्रेंच आदि से होते हुए इसे अंग्रेजी में 'जीरो' (zero) कहते हैं। शून्य के प्रयोग के बारे में पहली पुख्ता जानकारी ग्वालियर में एक मंदिर की दीवार से पता चलता है। मंदिर की दीवार पर लिखे गए लेखों (900 AD) में शून्य के बारे में जानकारी दी गई थी। शून्य के बारे में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मार्कस डी सुटॉय कहते हैं कि आज हम भले ही शून्य को हल्के में लेते हैं, लेकि

विश्वास

  सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली। सोने का हिरन बाद में मारीच निकला। भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला। लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है। जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे। राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से व

Why Congress avoiding ShriRam pran pratishtha

  Many wonder why Congress is boycotting the Ayodhya event. Some view it as a monumental blunder or even Harakiri. However, their puppet masters are not naive enough to go against the sentiment of the nation and the Dhārmics. First of all, we are talking about a party that survived many tests including an Emergency, Sikh Genocide, and gigantic corruption for over 100 years. It cannot survive if not supported by long term strategy and patient execution. Also, this is a party as per Wikileaks cables colluded with the CIA to stop narendramodi in early 2000s. So, they must have known something most Indians didn't see. I say this to reiterate their dark power that enabled an international level propaganda against Modi tirelessly since Godhra. Now, here's the crux : their covert plan, death-like patience, unwavering tenacity, cunning, and relentlessness. We criticise Congress for today's actions while overlooking their grand scheme. Let's put on our critical thinking hats, as