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Showing posts from June, 2020

तयोस्तु कर्मसन्यासात् कर्मयागो विषिष्यते

तयोस्तु कर्मसन्यासात् कर्मयागो विषिष्यते भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कर्म का त्याग (कर्मसंन्यास) एवं कर्मयोग अर्थात् योग की भावना से, अनासक्त होकर कर्म करना, इन दोनों में से कर्मसंन्यास की तुलना में कर्मयोग श्रेष्ठतर है। कर्मयोग यानि कर्म करते हुए आध्यात्मिक चेतना का विकास श्रेष्ठतम है। हम वन में जाकर एकांतिक जीवन जीते हुए ध्यान, साधना कर सकते हैं, परन्तु समाज में रहते हुए, हजारों लोगों के कष्टों को अनुभव करते हुए, उनकी सहायता करते हुए- सेवा करते हुए, परिस्थितियों को सुधारते हैं, तब भी हम आध्यात्मिक साधना के पथ पर ही बढ़ रहे होते हैं और यह निश्चित रूप से वन में जाकर की जा रही एकांतिक साधना से श्रेष्ठ है। भगवान बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है कि एक दिन जब वे मठ में घूम रहे थे तो एक भिक्षु को एक कक्ष में हैजे से कष्ट पाते देखा। उन्होंने उससे पूछा कि क्या कोई अन्य भिक्षु तुम्हारी देखभाल व सेवा के लिए आया ? उत्तर मिला - जी नहीं, वे सब ध्यान कर रहे थे। भगवान ने उसकी सेवा सुश्रुषा की। तब अन्य भिक्षुओं के आने पर भगवान ने उनसे उस भिक्षु की सेवा न करने का कारण पूछा। उन्होंने कहा, आपने हमें ध्या

श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः

श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः वह व्यक्ति जिसमें श्रद्धा और भक्ति है तथा जिसने इन्द्रियों पर अपना नियंत्रण कर लिया है, वह ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी है। यदि विद्यार्थी में श्रद्धा है - गुरू के प्रति श्रद्धा, तो वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है। श्रद्धा का अर्थ है विश्वास - गुरू के प्रति विश्वास, साथ ही स्वयं अपने ऊपर भी विश्वास - यह विश्वास कर्तव्य में भी दिखना चाहिए यानि भक्ति के भाव से परिपूर्ण विश्वास। अपने स्वयं का अहं, परिवार का अहं, आर्थिक स्थिति, पद का अहं आदि से युक्त विद्यार्थी इस श्रद्धा को अपने अंदर नष्ट कर देता है। ऐसी स्थिति में जब गुरू के प्रति विश्वास में कमी होती है तो हम उनसे कोई प्रेरणा, ज्ञान प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं। आदि गुरू शंकराचार्य जी कहते हैं - ‘आस्तिकीय बुद्धि ही श्रद्धा है’ - सकारात्मक मन का ढाँचा ही श्रद्धा कहलाता है। श्रद्धा सनकीपन का विलोम है, वह सनकीपन जो नकारात्मक मनस्थिति के कारण पैदा होता है। तत्परः शब्द का अर्थ है समर्पित, ज्ञान के प्रति समर्पित दृष्टि। तत् शब्द का अर्थ सर्वोच्च ज्ञान या सत्य है। हम कई बार उपासना के दौरान बोल