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Showing posts from December, 2021

इतिहास का गलत लेखन क्यों

 भारत के इतिहास और जीवन-भाग्य को निर्धारित करने वाले कालखण्ड के रूप में इतिहास के हर गम्भीर अध्येता को बहुत डूबकर ईस्वी 630 से लेकर 1200 ईस्वी के बीच के इतिहास को अनिवार्यतः पढ़ना चाहिए। इस अध्ययन के दौरान राजपूत काल के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रीय राजवंशों का विस्तृत अध्ययन करने के साथ साथ हमें अरब-तुर्क साम्राज्यवाद के उदय व इस्लाम धर्म के प्रसार को भी उतने ही विस्तार से पढ़ने की जरूरत है। भारत के उत्तर पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त पर अवस्थित समस्त भूभाग तथा 640 ईस्वी से लेकर 712 ईस्वी में सिंध पर अरबों के आक्रमण के समय तक इस्लाम का विश्व में प्रसार किये जाने की कोशिश को भी घटनावार जानने की जरूरत है। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के हाथों राष्ट्र की लगभग 300 वर्ष तक रक्षा होती रही। नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय, मिहिरभोज प्रभास, महेन्द्रपाल प्रथम व महीपाल के शासनकाल के दौरान ---- 730 ईस्वी से लेकर 948 ईस्वी तक भारत बर्बर हिंसक अरबों की आंधी से पूर्णतया सुरक्षित रहा। गुर्जर प्रतिहारों के अपरिमित पराक्रम के चलते ही कट्टर व धर्मांध इस्लाम सिन्धु व मुल्तान में आठवीं सदी में स्थापित  होने के बावजू

Know Your Worth

"You must find the courage to leave the table if respect is no longer being served" Your worth as a person is not determined by your accomplishments or the things you’ve been conditioned to believe define you. Your self-worth doesn’t fluctuate depending on your achievements or failures. To know your worth is to know who you truly are beyond your conditioned mind. Knowing your self-worth allows you to disassociate the outcome of what you do with who you are. It implies you are in touch with your inner soul, and more than going through life, you are intentional, doing only the things that serve your purpose. So basically, knowing your worth enables you to be true to who you are, and live an authentic life. Your worth goes beyond material possessions. It’s tied to the fact that with or without the achievements, you are still valuable. You might be slow to learn and an average performer at work, but these things don’t reduce your worth one bit. When you know your sel

Mahabharat and Bharat

  Post for mature people. Kids, gyanchand and popcorn stay away Duryodhan & Rahul Gandhi Both without talent. But yet wanted to be rulers on the principle of birth-right. Bhishma & Advani Never crowned. Got respect & yet became helpless at the end of their lives. Arjun & Narendra Modi Both talented. Reached the highest position due to being on the side of dharma. But realise how difficult it is to follow and practice. Karna & Manmohan Singh Both intelligent. But never reached anywhere being on the side of adharma. Shakuni & Kejriwal Both never fought a war, just played dirty tricks. Dhritrashtra & Sonia Both were blind for love of their sons. Lord Krishna and APJ Abdul Kalam We celebrate both of them but do not follow what they taught and preached. This is MAHABHARAT and BHARAT.

धर्मयुद्ध में तटस्थ ?

  पानीपत का तीसरा युद्ध और "NOTA"   अहेमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया.  कोई उसे रोकने का साहस न कर सका.  तब महाराष्ट्र से पेशवा ने उसको टक्कर देने की कोशिश की. अब्दाली को रोकने के लिए पेशवाई सेना पानीपत पहुच गई.  पेशवा  ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों से आव्हान किया कि - वे अब्दाली को रोकने में उनका साथ दे,।। लेकिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों NOTA दबा दिया.  बोले यह हमारी लड़ाई थोड़े ही है यह तो अफगानों और पेशवा की लड़ाई है.  स्थानीय हिन्दू NOTA दबा कर पीछे हट गए लेकिन स्थानीय मुसलमानों ने अहेमद शाह अब्दाली का साथ दिया.  पानीपत के इस युद्ध में पेशवा के सैनिक  हार गए और अब्दाली जीत गया.।। लेकिन उस जीत के बाद  "अहेमद शाह अब्दाली" ने महाराष्ट्र में नहीं बल्कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश में भयानक कत्लेआम किया.  कुरुक्षेत्र, पेहोवा, दिल्ली, मथुरा, वृन्दावन आदि के मंदिर तोड़े.  यहीं की औरतों के साथ बलात्कार किया और अपने साथ गुलाम बनाकर ले गया.  महाराष्ट्र का वो कुछ नुकशान नह

War Lost on Table

  1971 A war INDIA won on the battlefield but Indira Gandhi lost on the table.   Zulfikar Ali Bhutto came to Simla as the head of a defeated nation with nothing to bargain. 93,000 Pakistani prisoners were in India and the tehsil of Shakargarh as well as large tracts of desert were under Indian occupation. The Pakistani State itself was tottering and the only card Bhutto had was to play on the Indian need to have a viable Pakistan survive. Using his weakness dexterously, Bhutto made sure that India could never drive a hard bargain. All that Pakistan conceded at Simla was that it would not use force to solve the Kashmir problem and it would deal with the issue bilaterally. It is indeed astonishing that a militarily weak and defeated nation promising 'non use of force' against another country ten times its size, being seen as a concession. This naivete was to cause immense difficulties in the future. The acceptance of the disputed status of Kashmir was a major diplomatic b

हिन्दू चिंतन दृष्टि

 भारत की एकता और सुरक्षा के लिए बड़ा अवसर है, लेकिन हमें बदलना होगा .. सऊदी अरब ने तब्लीगी जमात पर पांबन्दी लगा दी है।  वहाँ के प्रिंस सलमान धड़ा-धड़ इस्लामिक मान्यताओं को बदल रहे हैं, शुक्रवार की जुम्मे की छुट्टी भी बंद कर दी, सिनेमा खोल रहे हैं ... महिलाओं को अधिकार दे रहे हैं .. प्रिंस सलमान अगले अतातुर्क हो सकते हैं ?.. कुछ खबर ऐसी भी आ रही हैं कि अरब मूल के पढे लिखे युवा अब अपने प्राचीन मान्यताओं को खोज रहे हैं, उन्हें जान रहे हैं, समझ रहे हैं और उनसे जुड़ रहे हैं ... अगले कुछ वर्षों में सऊदी अरब पूरी तरह बदल जाएगा इसे कोई नहीं रोक सकता है .. इसी प्रकार ईरान में भी लोग प्राचीन फारस और जरथुष्ट्र धर्म को जान रहे हैं और उसके त्योहारों को मना रहे हैं ...  बाकी यूरोप में तो इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है  ... ये EX muslims,  Awesome_without_ Allha का कैम्पेन ही चला रहे हैं, सैकड़ों मौलाना इस्लाम छोड़कर इस्लाम की बर्बरता को उजागर कर रहे हैं। कई यू ट्यूब चैनल बने हुए हैं  ....  कई मुर्तद हो चुके मुस्लिम डर की वजह से अभी छिपे हुए हैं या चेहरा छिपाकर बात करते हैं .. लेकिन

वीर भोग्या वसुंधरा

बीआर चोपड़ा की महाभारत में एक दृश्य है, जब रात्रि के समय कुन्ती और गांधारी युद्धभूमि में शरशय्या पर पड़े भीष्म से मिलने जाती हैं। उसी क्षण दो सैनिक एक मृत सैनिक का शव उठा कर संस्कार के लिए ले जा रहे होते हैं। गांधारी उस शव को प्रणाम कर कहती हैं- "मैं नहीं जानती कि आपने पांडवों की ओर से युद्ध किया था या कौरव दल से थे, फिर भी मैं आपको प्रणाम करती हूँ क्योंकि आप इस महान राष्ट्र के सैनिक थे।" राष्ट्रवाद और कुछ नहीं, इसी भावना का नाम है।      योद्धा पलंग पर सो कर प्रयाण नहीं करते, वे लड़ते लड़ते ही वीरगति प्राप्त करते हैं। वो संसार के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं के बीच में रथ का चक्का ले कर उतरा बालक अभिमन्यु हो, या युद्धभूमि में लड़ते लड़ते प्राण देने वाली लक्ष्मीबाई सी वीरांगना! ईश्वर बीरों को वीरगति दे कर ही सम्मानित करता है। यही उनके शौर्य का पुरस्कार होता है।     श्राद्ध के कर्मकांड में एक विधि होती है, जहाँ मृतक के लिए बने आटे के पिंड को तोड़ कर उसके स्वर्गवासी पिता, पितामह और परपितामह के पिण्ड में मिलाया जाता है। भाव यह होता है कि अब वह व्यक्ति अपने पूर्वजों में मिल गया। राष्ट्र क

जहाँ धर्म वहीँ जीत

  कांग्रेस के पतन का कारण..... इनके जैसे लोग ही है.... महाभारत युद्ध के पहले पांडवों का सेनापति कौन बने, इसके लिये राजा द्रुपद के यहाँ एक सभा का आयोजन हुआ।  युधिष्ठिर, भीम, सात्यिकी सहित बड़े योद्धाओं ने राजा द्रुपद के नाम का अनुमोदन किया। अर्जुन इससे सहमत नहीं थे, वह धृष्टद्युम्न को बनाने चाहते थे। सभा ने अंतिम निर्णय भगवान कृष्ण पर छोड़ दिया। योगेश्वर भगवान बोले - एक ऐसी व्यक्ति को सेनापति बनना चाहिये , जिसके उपर आदर्श , निष्ठा , नैतिकता , विचारधारा का बोझ न हो।वह युद्ध में होने वाले परिवर्तन, आकस्मिक स्थितियों , विषम परिस्थितियों में निडर होकर निर्णय ले सके।  महाराज द्रुपद उस काल के है, जँहा यह सारे बोझ है। अतः उचित यही होगा कि युवा धृष्टद्युम्न को सेनापति बनाया जाय। 18 दिन वह अकेले पांडवों के सेनापति रहे , कठोर निर्णय लिये। उधर कौरव निष्ठावान , प्रतिज्ञाबद्ध , आदर्शवादी लोगों को सेनापति बनाते रहे। जो विजय से अधिक अपने व्यक्तित्व के लिये लड़ते रहे। नेहरुनियन मॉडल में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, नौकरशाही से लेकर पत्रकारिता तक अयोग्य लोगों को ऋणी और निष्ठावान बनाया। कांग