कचौड़ी पुराण
कचौड़ी पुराण कोई इस पृथ्वी पर जन्में और बिना कचौड़ी खाये मर जाये ये तो हो ही नही सकता... मैदा से निर्मित सुनहरी तली हुई कवर के साथ भरे मसालेदार दुष्ट दाल का दल है ये। जो सदियों से नशे की तरह दिल दिमाग पर हावी बनी हुआ है... हमारा राष्ट्रीय भोजन है ये। सुबह नाश्ते मे कचौड़ी हों, दोपहर मे भूख लगने पर मिल जाये ये या शाम को चाय के साथ ही इनके दर्शन हो जायें, किसी की मजाल नही जो इन्हे ना कह दे... कचौड़ी का भूख से कोई लेना देना नही होता। पेट भरा है, ये नियम कचौड़ी पर लागू नही होता। कचौड़ी सामने हों तो दिमाग काम करना बंद कर देता है। दिल मर मिटता है कचौड़ी पर। ये बेबस कर देता हैं आपको। कचौड़ी को कोई बंदा ना कह दे ऐसे किसी शख्स से मै अब तक मिला नही हूँ... कचौड़ी मे बडी एकता होती है। इनमें से कोई अकेले आपके पेट मे जाने को तैयार नही होती। आप पहली कचौड़ी खाते हैं तो आँखे दूसरी कचौड़ी को तकने लगती है, तीसरी आपके दिमाग पर कब्जा कर लेती है और दिल की सवारी कर रही चौथी कचौड़ी की बात आप टाल नही पाते... कचौड़ी को देखते ही आपकी समझदारी घास चरने चली जाती हैं। आप अपने डॉक्टर की सारी सलाह, अपने कोलेस्ट्र...