शिव होना
एक किस्सा चाँद के उस हिस्से का होता है जो उजाले से महरूम रहता है जिसे कभी किसी ने देखा ही नही। सूरज की रोशनी से चमकते चंद्र का आंशिक हिस्सा पूर्णिमा का गौरव ले जाता है। कवियों के शब्दों में इतराता रहता है पर उस हिस्से का क्या जो चाँद का होकर भी कभी चाँद का कहला नही पाया।
हम सभी के जीवन मे ऐसे हिस्से रहते हैं जो जीवन भर अपरिभाषित रहते हैं। अंधेरे की गुमनामी में डूबे रहने को अपनी नियति मान लेते हैं। सकुचे से,सहमे से हिस्से, जो जीवन किसी की स्वीकृति मिलने की बिना पर ही गुजार देते हैं।
जीवन की आपाधापी में केवल चमक दमक ही दिख पाती है, रुक कर कभी ध्यान से देखा जाए तो ऐसे कोने दिख जाते जिन्हें सदियों से एक भरी निगाह मयस्सर नही हुई, जमीदोंज हसरतों के ध्वंस आखिरी समय तक स्पर्श की तृण भर कामना करते रहते हैं। यह सब कहीं और नही किसी और कि बात नही स्वयं की ही बात है। उजालों के पीछे भागता मन अपने अंधेरों को कहां टटोल पाने का साहस कर पाता है।
कभी कभी भस्म को भूषण बना कर देखिए, अपने अंधेरों को स्पर्श करके देखिए, शिव हो जाएंगे।
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