कंधार विमान अपहरण के सबक़
गर्व से जीना है तो कंधार की मानसिकता से निकलकर एन्टेबी की मानसिकता लाना अनिवार्य है।
कंधार की क्या बात है? वही, IC 814 विमान का काठमांडू से अपहरण और कंधार तक उसकी अपमानजनक यात्रा। एक निर्दोष यात्रीरुपिन कत्याल की हत्या कर के सभी यात्रियों में दहशत फैलाना और भारत सरकार पर दबाव बनाना। लेकिन इस हत्या से सरकार केझुकने तक के पड़ाव के दौरान जो हुआ उसकी बात करना आवश्यक है।
यात्रियों के परिजनों को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी के दरवाजे पर धरने, निदर्शन और मीडियाई ड्रामेबाजी किसने की यह भीअलग विषय है। लेकिन वहाँ लोगों को शांत करने आए पूर्व फौजी, ताजा बलिदान हुए कैप्टन आहूजा की फौजी असफर विधवा इन सबसे जिस अभद्रता से यात्रियों के परिजन पेश आए थे वह मानसिकता अधिक चिंता का विषय है। अपने स्वजनों के सामने टेररिस्टों कीमांगों का देश के लिए क्या परिणाम होगा इसकी उनको कोई परवाह नहीं थी। तब की रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके लोगों को छोड़ दो, उनकी मांगें मान लो, बस हमारे लोग वापिस लाओ, या फिर कश्मीर दे दो, देश दे दो, सब दे दो, बस हमारे लोग वापस लाओ, इस तरहकी आवाजें उठ रही थी। बलिदानी कैप्टन आहूजा की विधवा पर अभद्र ताने मारे गए कि यह मनहूस अपना खसम खाकर आई है हमेंवही सिखाने।
यह 1999 की बात है, हवाई यात्रा महंगी होती थी। दूसरी बात यह है कि यह काठमांडू से नई दिल्ली आता हुआ हवाई जहाज था। लोगकाठमांडू छुट्टियाँ मनाने गए थे। इन दो बातों से आर्थिक स्थिति समझ आती है, और उनकी बातों से उनकी मानसिकता।
यही मानसिकता आज भी है। अपने स्वार्थों या हितों पर आघात होता है तो उन्हें बचाने किसी भी हद तक गिर जाने की। अपने किए काबचाव एक ही होता है कि देश समाज और धर्म से हमें क्या मिलता है जो हम हमारी सुविधाओं पर पानी छोड़ दें। ये सुविधाएं हमने अपनीमेहनत से कमाई हैं, समाज, देश या धर्म का इनमें कोई योगदान नहीं है, हम इन्हें क्यों छोड़ दें, यह तो अत्याचार है!
और बहुत ही कम हिन्दू इन सफल हिंदुओं से असहमत होंगे।
कौनो हो नृप, हमें क्या हानी... बात यही है, नृप बदलकर जब खलीफा या सुल्तान आता है तो क्या हानी होती है यह समझ आनीचाहिए। लेकिन होता क्या है कि कितना भी पढ़ा हो, सुना हो, देखा हो, जब अपने पर आती है तो हर सफल हिन्दू सोचता है कि नुकसानदूसरों का हुआ था, वे मूर्ख थे, मैं बुद्धिमान हूँ, वे पापी थे, मैं उतना पापी नहीं हूँ, भगवान मुझे बचा लेंगे... आदि आदि... और जब लुटजाता है तब ठीकरा फोड़ने को खुद को छोड़कर कोई भी चलता है, सब से पहले तो भगवान का नंबर आता है कि उसने नहीं बचाया।कोई भगवान नहीं होता।
युद्ध में जो पक्ष युद्ध छेड़ना चाहता है वो हमेशा पूर्व तैयारी करता है। इसमें एक बड़ी बात होती है शत्रुओं की जासूसी जिससे शत्रु कीप्रतिरोध क्षमता को क्षीण किया जाये। महत्व के ठिकानों का पता लगाया जाता है, उन्हें कैसे नाकाम करना है इस पर योजनाएँ बनाईजाती हैं। उसके लोगों के बीच फूट डालने के षडयंत्र बनाए जाते हैं। समाज में सरकार के प्रति रोष पैदा हो इसके लिए कई कांड किएजाते हैं, यहाँ गिनने लगें तो पोस्ट की पुस्तिका बन जाएगी। जासूसों को ऐसे वर्ग को भी चिह्नित करना होता है जिसके लिए स्वार्थ हीसर्वोपरि होता है। यह वर्ग पर्याप्त साधनसम्पन्न तथा महत्वाकांक्षी होता है। कमाई खोने का डर सब को होता है, और जितनी अधिककमाई हो उतना डर भी अधिक होता है। इस वर्ग तक सूचनाएँ पहुंचा दी जाती हैं कि वे शत्रु का सहयोग करें या कम से कम अपनेसरकार का सहयोग न करें तो उन्हें बख्श दिया जा सकता है। वरना हम तो जीतेंगे ही और तुमने हमारे कहने के विरुद्ध आचरण किया तोतुम्हारी खैर नहीं।
आज भी यह मानसिकता सफल हिन्दू में कायम है। इस पर काम आवश्यक है कि शत्रु अपने वादे तोड़ने के लिए ही करता है, किसी कोबख्शा नहीं जाता। जगत सेठ ने मराठों का साथ नहीं दिया लेकिन उसका तो म्लेच्छों ने ही निर्वंश कर दिया, नामलेवा भी नहीं छोड़ा।
समरसता ही स्वरक्षण की कुंजी है। इस पर विस्तार अलग से करना होगा। यहाँ पोस्ट के शीर्षक पर लौटते हैं।
कंधार की मानसिकता पर संक्षेप में लिख चुका। अब एन्टेबी की मानसिकता की बात करते हैं। एन्टेबी, युगांडा का वो एयरपोर्ट है जहांइस्राइल के विमान हाइजैक किए गए थे। हाइजैकर्स का भी कोई धर्म नहीं था। उनका साथ दे रहे थे युगांडा के तत्कालीन प्रमुख ईदीअमीन। वहाँ से इस्राइल के कमांडोज ने उन्हें किस कदर छुड़ाया इस पर काफी लिखा गया है, फिल्म भी बनी है, इसलिए हम केवल उनजहाजों में अपहृत यात्रियों के परिजनों की बात करेंगे।
इस्राइल सरकार का निर्णय अतीव साहसी था, और असफल होता तो आत्मघातकी भी था। युगांडा पर आक्रमण ही माना जाता, अच्छीबात इतनी ही थी कि युगांडा से प्रत्याक्रमण हो नहीं सकता था और न ही कोई युगांडा की बाजू से इस्राइल का कोई नुकसान करता।युद्ध नहीं होता और कोई निगेटिव प्रचार होता भी तो उसका सामना करने के लिए इस्राइल सक्षम था। वैसे भी उच्च नैतिक आधारइस्राइल के पास था। लेकिन यह पूरी संभावना थी कि सब यात्रियों के साथ उनके छुड़ाने भेजे कमांडो भी वहीं मारे जाते।
फिर भी इस्राइली प्रधान मंत्री रबीन ने यह निर्णय लिया, उनके मंत्री मण्डल ने और पूरी इस्राइल की जनता ने उनका साथ दिया। विपक्षवहाँ भी है, लेकिन काँग्रेस जितना कमीना नहीं है, वे भी साथ रहे। रबीन के दरवाजे पर धरना प्रदर्शन नहीं किए। और बाद में भीआलोचना नहीं की कि फेल होते तो क्या होता। उनके लिए वाकई राष्ट्र सर्वोपरि था, स्वार्थ या उम्मत सर्वोपरि नहीं।
इसीलिए, भारत में हिन्दू ही रहकर गर्व से जीना है तो कंधार की मानसिकता से निकलकर एन्टेबी की मानसिकता लाना अनिवार्य है।वरना जीना ही मुमकिन नहीं होगा, कन्वर्ट होने का भी चॉइस नहीं मिलेगा। आप बोझ होंगे, आपको क्यों पालेंगे वे? आपके माल सेमतलब है और पसंद आए तो आपके घर की महिलाओं से, वरना उन्हें भी काट दिया जाएगा।
अर्जुन को युद्ध न करने का विकल्प नहीं था। आज हर भारतवासी हिन्दू अर्जुन ही है।
तस्मादुत्तिष्ठ !
इदं राष्ट्राय, इदं न मम।
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