इस्लामीकरण फ़िल्मों का
वो सच जो धीरे धीरे उजागर हो रहा है
यह जो हाजी अली, साईं बाबा, अजमेर शरीफ, बहराइच गाजी बाबा जाकर नाक रगड़ने का हिंदुओं का चलन है यह कोई बहुत पुराना नहीं।
महज 60/70 साल पहले तक इन मुर्दों की कब्रों पर कोई हिंदू नहीं जाता था।
फिर शुरू हुआ सोचा समझा इस्लामी+वामपंथी+कांग्रेस की तिकड़ी का षड्यंत्र।
और इसका जिम्मा सौंपा गया हिंदी सिनेमा जगत को।
गाने शुरू हुए:-
किसी को बच्चा नहीं होता था :- या मोहम्मद भर दे मेरी झोली खाली। शिरडी वाले साईं बाबा आया है तेरे दर पर सवाली।
चलो दरगाह पर गाना गाने:- 9 महीने की जगह 4 महीने में ही बच्चा दुनिया में आ गया।
हीरो बुरी तरह घायल होकर अस्पताल में..... हीरो की अम्मा दरगाह पर:-अली मोला अली मोला अली मोला।
डॉक्टर ने कहा हीरो की जिंदगी खतरे में। और अली मौला के चमत्कार से हीरो ने आंखें खोल दी।
हीरोइन के पीछे गुंडे पड़े.. हीरोइन भगवान को बचाने के लिए याद करती है...हीरो बचाता है:- अल्लाह अल्लाह तारीफ तेरी।
और भी बहुत इस्लामीकरण की गंध फैलाने के लिए:-
और झूठ सही पर चमत्कार को नमस्कार और हिंदू लेट कर दंडवत हो गया.. उठा पहुंच गया दरगाह पर।
मूर्खता, कायरपन, हीन भावना के शिकार, दब्बूपने के आपको ढेरों उदाहरण मिलेंगे। लेकिन इतिहास की वेदना और पीड़ा भूलकर अपने पूर्वजों के हत्यारों, अपनी बहन बेटियों की नीलामी करने वाले बलात्कारियों, हमारी आस्था के प्रतीक हमारे मंदिरों को तोड़ने वाले दुष्ट अधर्मियों की कब्रों पर जाने वाले हीन सिर्फ हिंदुओं में मिलेंगे। एक दो नहीं करोड़ों।
अब थोड़ी थोड़ी आंखें खुल रही हैं, लेकिन देखना यह है यह आंखें कब तक खुली रहती हैं।
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