भगवद गीता
गीता की शक्ति तथा आकर्षण
गीता, एक ऐसी पुस्तक है, जो सभी नर- नारियों में निहित शाश्वत आध्यात्मिक तत्व की प्राप्ति में और इसके साथ ही उन मानवीय लक्ष्यों को भी समझने में सहायता करती है, जिनके बारे में हमारे संविधान में लिखा गया है तथा जिन्हें आधुनिक युग का मानव ढूंढ रहा है| यही कारण है कि गीता का यह सन्देश आज विश्व के विभिन्न भागों में फैल रहा है| भूतकाल में हम लोग प्रायः एक धार्मिक कार्य के रूप में या मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए गीता का पाठ किया करते थे| परन्तु यह एक परम व्यवहारिक पुस्तक है, इस बात का हमें कभी बोध भी नहीं हुआ| गीता की शिक्षाओं का व्यवहारिक उपयोग हमने कभी समझा ही नहीं| यदि हमने ऐसा किया होता, तो हमें हजारों वर्ष का विदेशी आक्रमण, आतंरिक जाति संघास, सामंतवादी अत्याचार तथा राष्ट्रव्यापी निर्धनता नहीं देखने पड़ती| हमें एक ऐसे दर्शन की आवश्यकता है, जो मानवीय स्वाभिमान,स्वाधीनता तथा समरसता पर आधारित एक नए कल्याणकारी समाज के गठन में हमारी सहायता कर सके और गीता में एक ऐसा दर्शन उपलब्ध है, जो लोगों के मन तथा ह्रदय को इस दिशा में प्रशिक्षित कर सके| आज के युग में स्वामी विवेकानंद जी ने पहली बार गीता को यह दिशा- एक व्यवहारिक दिशा प्रदान की|
गीता की उपमा उसके श्लोकों में उस दूध से की गयी है, जिसे श्री कृष्ण रूपी ग्वाले ने वेड रुपी गायों से दुहा है| यह दूध किसलिए? यह पूजा के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारे पुष्टि हेतु पीने के लिए है| तभी हमें शक्ति मिल सकती है| परत्नु इन सैकड़ों वर्षों तक हमने इस दूध के पात्र को लिया, इसकी फूलों से पूजा की, प्रणाम किया, परतु कभी पिया नहीं| इसी कारण हम लोग शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक दृष्टि से दुर्बल रह गए| यदि हम इस दूध को पीना और पचाना प्रारंभ करें, तो हमारी अवस्था बदल जाएगी| यह हमें चारित्रिक बल, कार्य कुशलता तथा सेवाभाव का विकास करने में और अंततः एक नविन राष्ट्रिय भाग्य का निर्माण करने में सहायता करेगा| यह हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए है| इसमें जीवन तथा कर्म का एक सर्वांगींण दर्शन है| यह पुस्तक हमें सुलाने के लिए नहीं जगाने के लिए है|
गीता का सन्देश कई हजार वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के उत्तेजनापूर्ण रणप्रांगण में दिया गया था- एक वीर शिक्षक द्वारा, एक वीर शिष्य को दिया गया एक वीरतापूर्ण सन्देश है| सार्वभौमिक होने के कारण, यह संसार में कहीं भी स्थित, किसी भी व्यक्ति को अपनी मानवीय संभावनाओं को अधिकतम परिमाण में अभिव्यक्त करने में सक्षम बनाकर उसके लिए उपयोगी सिद्ध होती है| इसके एक हजार वर्ष पूर्व उपनिषद या वेदांत ने मानवीय संभावनाओं के विज्ञान का प्रतिपादन किया और गीता उसके व्यवहारिक पक्ष को सामने रखती है|
गीता का सर्वप्रथम अंग्रेजी अनुवाद Sir Charles Wilkins द्वारा होकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रकाशित हुआ था| भारत के प्रताहम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इसकी भूमिका लिखी, जिसमें हम निम्न भविष्यवाणी पाते हैं-
“जब भारत में अंग्रेजों का प्रभुत्व समाप्त हुए काफी काल बीत चूका होगा और इसकी सम्पदा तथा सत्ता के उद्गम मात्र का विषय होकर रह जायेंगे, तब भी भारतीय दर्शनों के लेखक जीवित रहेंगे|” एक सदी बाद सर एडविन अर्नाल्ड(१८३२- १९०४) द्वारा अंग्रेजी में ‘The Song Celestial’ नाम से इसका एक और भी सुन्दर अनुवाद किया गया|
आदि शंकराचार्य द्वारा गीता महिमा का उद्घाटन
आठवीं शताब्दी में पहली बार आद्य गुरु शंकराचार्य जी ने इस पुस्तक को बृहत इतिहास ग्रन्थ महाभारत से बहार निकला, इस पर संस्कृत में एक महान भाष्य लिखा और लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया| तब तक यह महाभारत के भीष्म पर्व में छिपी हुई थी| आगे चलकर यह ग्रन्थ हमारी राष्ट्रिय भाषाओँ में प्रवेश कर गया, अनेकों ने इसकी व्याख्याएं लिखीं| आदि शंकराचार्य जी के कुछ शताब्दियों बाद संत ज्ञानेश्वर जी ने मराठी में ज्ञानेश्वरी लिखी| आधुनिक काल में दो खण्डों में इस पर गीता रहस्य नाम से अपनी पुस्तक लिखी| आज गीता भारत तथा विश्व के अनेक भागों में अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक है| विश्व की समस्त भाषाओँ में इसके अनेक संस्करण निकल चुके हैं| महान उपनिषदों में मानवीय संसाधन तथा मानवीय संभावनाओं का जो एक श्रेष्ठ विज्ञान प्रस्तुत किया गया है, उसे अपनी व्यवाहरिक दिशा गीता में ही प्राप्त होती है| इस ग्रन्थ का हमें इसी दृष्टिकोण से- मानवीय विकास तथा परिपूर्ति के विज्ञान के रूप में ही अध्ययन करना होगा|
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