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श्री राम और श्री कृष्ण

 प्रभु श्रीराम एवं श्रीकृष्ण मे एक प्रमुख अंतर है, श्रीराम का घर छोड़ना एक षड्यंत्रों में घिरे राजकुमार की करुण कथा है और कृष्ण का घर छोड़ना गूढ़ कूटनीति।  राम जो आदर्शों को निभाते हुए कष्ट सहते हैं, कृष्ण षड्यंत्रों के हाथ नहीं आते बल्कि स्थापित आदर्शों को चुनौती देते हुए एक नई परिपाटी को जन्म देते हैं... श्री राम से श्री कृष्ण हो जाना एक सतत प्रक्रिया है।  श्रीराम को मारीच भ्रमित कर सकता है लेकिन कृष्ण को पूतना की ममता भी नहीं उलझा सकती। श्रीराम अपने भाई को मूर्छित देखकर ही बेसुध बिलख पड़ते हैं लेकिन कृष्ण अभिमन्यु को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकते। राम राजा हैं..  कृष्ण राजनीति..  राम रण हैं..  कृष्ण रणनीति..  श्री राम मानवीय मूल्यों के लिए लड़ते हैं श्री कृष्ण मानवता के लिए..  श्री राम धर्म है तो श्री कृष्ण धर्म स्थापना.. हर मनुष्य की यात्रा राम से ही शुरू होती है और "समय" उसे कृष्ण बनाता है। व्यक्ति का कृष्ण होना भी उतना ही जरूरी है जितना राम होना लेकिन राम से प्रारंभ हुई यह यात्रा तब तक अधूरी है जब तक इस यात्रा का समापन कृष्ण पर न हो... बाक...

राम की महिमा

  राम की महिमा अद्भुत है - राम भक्त भी पगलाए रहते है और  राम विद्रोही भी पागल हो जाते हैं - त्याग और समर्पण है राम कथा में, कांग्रेस ने भी कम “त्याग” नहीं किया - एक आततायी बाबर ने 1527 में भव्य अलौकिक श्रीराम मंदिर को तोड़ कर अपनी इबादत के लिए एक मस्जिद बना दी और तब से सदियों से मंदिर के लिए संघर्ष होता रहा - यह हिन्दू मानस है जो कानून के सहारे अपना अधिकार वापस ले सका वरना इस्लामिक राज्य होता तो तलवार के जोर पर काम हो जाता पर ऐसा करना सनातन धर्म के DNA में है ही नहीं - आज के हालात देख कर भी साबित होता है कि भगवान राम की महिमा अद्भुत है - एक तरफ जहां सब कुछ राममय हो रहा है और राम भक्त पागल से हुए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ भगवान राम को काल्पनिक कहने वाले राम द्रोही अलग तरह से पागल हो रहे हैं - माता शबरी जब राम की प्रतीक्षा में रोज अपने आंगन को पुष्पों से सजाती थी तब उसके आसपास के लोग कहते थे राम ने आना तो है नहीं, ये शबरी “पागल” हो गई है - तब कुछ लोग यह भी कहते थे कि भगवान के प्रेम में रम जाने को ही पागलपन कहते हैं - दूसरी तरफ रावण और उसकी सेना भी भगवान राम के विरोध में प...

रजत पदक बनाम कांस्य पदक

 आपने देखा है कि खेल के अंत में कांस्य पदक विजेता आमतौर पर रजत पदक विजेता की तुलना में अधिक खुश होता है। यह कोई आकस्मिक खोज नहीं है बल्कि रजत पदक विजेताओं बनाम कांस्य पदक विजेताओं की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के बाद कई शोध अध्ययनों में सिद्ध तथ्य है! आदर्श रूप से, एक रजत पदक विजेता को कांस्य पदक विजेता से अधिक खुश होना चाहिए। लेकिन, इंसान का दिमाग गणित की तरह काम नहीं करता. ऐसा प्रतितथ्यात्मक सोच की घटना के कारण होता है। मनोविज्ञान में एक अवधारणा जिसमें जीवन की उन घटनाओं के लिए संभावित विकल्प बनाने की मानवीय प्रवृत्ति होती है जो पहले ही घटित हो चुकी हैं, जो कि जो घटित हुआ उसके विपरीत होगा।रजत पदक विजेता सोचता है, "ओह, मैं स्वर्ण पदक नहीं जीत सका।" कांस्य पदक विजेता सोचता है, "कम से कम मुझे पदक तो मिल गया।"रजत पदक हारने के बाद जीता जाता है, लेकिन कांस्य पदक जीतने के बाद जीता जाता है। हमारे जीवन में भी ऐसा होता है, जो हमारे पास है उसकी हम कद्र नहीं करते लेकिन जो हमारे पास नहीं है उसका दुख होता है। आइए अपने आशीर्वादों के लिए आभारी रहें, अगर हम गिनना शुरू करें तो वे ...

Empathy

  Empathy is not: Claiming, "I understand your feelings" Presuming you know their situation Instructing them to "be stronger" Overlooking body language Neglecting their emotions Hurrying the conversation Problem-solving for them Dominating the dialogue Downplaying their issues Focusing on your needs Resorting to platitudes Cutting them off A rapid solution Criticizing Sympathy Apathy Empathy is: Calm Attentive Inquisitive Consciousness Providing solace Full engagement Expressing regard Joining in their quiet Honoring their limits Creating a safe space Mirroring their feelings Verifying understanding Recognizing their reality Affirming their experiences Posing thoughtful inquiries Acknowledging their viewpoint How to apply this in practice? 6 methods to cultivate and demonstrate empathy: 1. Engage in Active Listening Full attention on the speaker. No interruptions. 2. Echo Emotions Reflect back, "It seems like you...

महाभारत संदेश

 *पिता जी अपने सेक्युलर बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का रेफरेंस दे रहे थे। 💁‍♂️* _"बेटा, Conflict को जहाँ तक हो सके, Avoid करना चाहिए।"_ महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते… तुम पूरा राज्य रखो, पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो, वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे। बेटे ने पूछा - पर इतना "Unreasonable Proposal" लेकर कृष्ण गए क्यों थे…? अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो..? पिता :- नहीं करता… क्योंकि कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा, उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था। बेटा :- फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे..? पिता :- वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना Unreasonable, कितना अन्यायी था। 🔜 वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे कि देख लो बेटा… "युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा हर हाल में" अब भी कोई शंका है तो निकाल दो अपने मन से, तुम कितना भी संतोषी हो जाओ, कितना भी चाहो कि "घर में चैन से बैठूँ मगर दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही। "लड़ना या...

Sanatan Parenting

 A Bamboo Tree A Chinese bamboo tree takes five years to grow. It has to be watered and fertilized in the ground where it has been planted daily. It doesn't break through the ground for five years. After five years, once it breaks through the ground, it will grow 90 feet tall in five weeks! But what is that seed doing for 5 years while u put water and fertilizer? Where all is going? WASTE? No, the seed is growing downward building strong and deep roots so that when it grows 100 ft, it can withstand the wind and storm A child from 0 to 5 years is like a seed. you have to water and fertilized with your family values and sow the seed of Character Today these 5 years is a long time, we can't afford to be out of work for 5 years. So we give the child to childcare.  You want a bamboo tree but you get a Banana Tree and since you growing a Banana tree, the tree needs to be cut after harvest SANATAN PARENTING is Anti Western Feminism, the choice is yours

हनुमान चालीसा

 हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र... कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयाँ हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है। माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व किया था। हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की। अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं। हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाऐं इसके बाद ही लिखी गई। हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं…. शुरुआत गुरु से… हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु से हुई है… श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। अर्थ - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूँ। गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया ...