मानवीय विकास को दिशा देने में अवतार की भूमिका
मानवीय विकास को दिशा देने में अवतार की भूमिका
शाश्वत सत्य रूपी श्रुति, मानव के आध्यात्मिक स्वरूप एवं सत्य की उपलब्धि के लिए उसकी जीवन यात्रा को कभी नहीं भूलना चाहिए। यही सनातन धर्म है, इसी बात पर बल देना एक अवतार का महान अवदान है। कभी-कभी सामाजिक नेता आते हैं, कुछ सामाजिक सुधारों की वकालत कर उन्हें लागू कराते हैं, परन्तु एक अवतार समाज को जरा भी अशान्त नहीं करते। वे समाज में एक नया आदर्श स्थापित करते हैं, जिसके द्वारा हम समझ जाते हैं कि क्या अच्छा, क्या बुरा-इस प्रकार सुधार लागू हो जाते हैं और हम चुपचाप बदलते जाते हैं। यह वह मृदु तथा मौन उपाय है, जिसके द्वारा यह महान आध्यात्मिक पद्वति समाज पर कार्य करती है।
काल के प्रवाह में लोगों के दृष्टिकोण सम्बन्धी परिवर्तन के स्वरूप समाज के अधःपतन हो जाता है। काम, क्रोध जैसे अनेकों दोषों के आधिक्य से समाज का नैतिक संतुलन बिगड़ जाता है - विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है तथा क्या कर्तव्य व क्या अकर्तव्य इसके निर्णय की क्षमता आसक्ति के बाहुल्य के प्रभाव में खतम हो जाती है। ऐसी परिस्थितियों में किसी अवतार का अवतरण होता है। वे किसी समाज सुधार का कोई आंदोलन नहीं प्रारम्भ करते हैं। वे केवल लोगों के सामने एक आदर्श रख उनकी आध्यात्मिक भावनाओं को अनुप्राणीत करते हैं। इसके फलस्वरूप लोगों में एक बार पुनः ईमानदारी, सच्चाई, करूणा तथा सेवा के भाव विकसित होते हैं - लोगों में आध्यात्मिक भाव के जागरण का यही सुफल होता हैं इसी प्रकार वे कार्य करते हैं तथा उनसे प्राप्त प्रेरणा के फलस्वरूप महान सुधार आन्दोलनों का सूत्रपात होता है। हमारे यहाँ ऐसे आचार्यों की एक महान श्रंखला रही हैं तभी तो हमने अधःपतन भी देखा तथा बार-बार पुनरुत्थान व पुनर्जीवन भी।
शाश्वत सत्य रूपी श्रुति, मानव के आध्यात्मिक स्वरूप एवं सत्य की उपलब्धि के लिए उसकी जीवन यात्रा को कभी नहीं भूलना चाहिए। यही सनातन धर्म है, इसी बात पर बल देना एक अवतार का महान अवदान है। कभी-कभी सामाजिक नेता आते हैं, कुछ सामाजिक सुधारों की वकालत कर उन्हें लागू कराते हैं, परन्तु एक अवतार समाज को जरा भी अशान्त नहीं करते। वे समाज में एक नया आदर्श स्थापित करते हैं, जिसके द्वारा हम समझ जाते हैं कि क्या अच्छा, क्या बुरा-इस प्रकार सुधार लागू हो जाते हैं और हम चुपचाप बदलते जाते हैं। यह वह मृदु तथा मौन उपाय है, जिसके द्वारा यह महान आध्यात्मिक पद्वति समाज पर कार्य करती है।
काल के प्रवाह में लोगों के दृष्टिकोण सम्बन्धी परिवर्तन के स्वरूप समाज के अधःपतन हो जाता है। काम, क्रोध जैसे अनेकों दोषों के आधिक्य से समाज का नैतिक संतुलन बिगड़ जाता है - विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है तथा क्या कर्तव्य व क्या अकर्तव्य इसके निर्णय की क्षमता आसक्ति के बाहुल्य के प्रभाव में खतम हो जाती है। ऐसी परिस्थितियों में किसी अवतार का अवतरण होता है। वे किसी समाज सुधार का कोई आंदोलन नहीं प्रारम्भ करते हैं। वे केवल लोगों के सामने एक आदर्श रख उनकी आध्यात्मिक भावनाओं को अनुप्राणीत करते हैं। इसके फलस्वरूप लोगों में एक बार पुनः ईमानदारी, सच्चाई, करूणा तथा सेवा के भाव विकसित होते हैं - लोगों में आध्यात्मिक भाव के जागरण का यही सुफल होता हैं इसी प्रकार वे कार्य करते हैं तथा उनसे प्राप्त प्रेरणा के फलस्वरूप महान सुधार आन्दोलनों का सूत्रपात होता है। हमारे यहाँ ऐसे आचार्यों की एक महान श्रंखला रही हैं तभी तो हमने अधःपतन भी देखा तथा बार-बार पुनरुत्थान व पुनर्जीवन भी।
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