परम वैभव की संकल्पना
परम वैभव की संकल्पना गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने के बाद एक बार टोक्यो विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर वहां गए थे परन्तु उनके कार्यक्रम का वहां के छात्रों ने बहिष्कार कर दिया, पूछने पर कहा की गुलाम देश के श्रेष्ठ तत्वों को सुनने में हमें कोई दिलचस्पी नहीं है क्यूंकि यदि ये इतने ही श्रेष्ठ हैं तो फिर ये परतंत्र क्यों हैं ? अतः यदि हमारे विचारों को मान्यता विश्व में दिलानी है तो हमें सही अर्थों में स्वतंत्र होना ही पड़ेगा | स्वतंत्र यानि ‘स्व’ का तंत्र - भारत जिन तंत्रों, व्यवस्थाओं के आधार पर चलता है (शिक्षा , अर्थ , प्रशासन, स्वास्थ्य , सुरक्षा , न्याय , व्यापर , उद्योग , कृषि , विकास आदि) और उन्नति करता है , वे सभी भारत के तत्वज्ञान , विचार प्रणाली, जीवन- विश्व- निसर्ग दृष्टि पर आधारित हो | अंग्रेजों ने योजनापूर्वक एक षड्यंत्र के तहत Denationalisation, Desocialisation and Dehinduisation of Hindu society कर दिया था| इसलिए सही अर्थों में १५ अगस्त को हम केवल स्वाधीन मा...
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