भारत के बने और भारत को बनाये!!!

  विषय हमारे सामने एक प्रश्न के रूप में उपवथित है, प्रश्न से एक नए प्रश्न का वनमााण होना थिाभाविक ही है| इस विषय को समझते हुए कुछ प्रश्न आते हैं ककयकि भारत का बनना है तो हम भारत के कैसेबनें? हमें भारत का बनना है तो िह कौन वसखाएगा कक हम भारत के कैसे बने? कहााँ से हम सीखें कक भारत के कैसे बनें? और जब भारत को बनाना है तो कैसे बनाना है? या क्या बनाना है िो कौन बतायेगा? क्या भारत पहले से नहीं है जो उसको बनाने की आिश्यकता आन पड़ी? हमेवजस भारत का बनना हैयकि िह पहले सेही हैतो किर हमेंकौन-सा भारत बनाना है? उसे कैसे बनाया जाए? क्या गारे-वमट्टी से कोई भिन वनमााण करना है या ककसी विशेष प्रकार की कालोनी बनानी है? कुछ प्रश्नों का सीधा उत्तर भी कठिन लगता है और कुछ टेढ़ेप्रश्नों का उत्तर खोजने मेंआनंि आता है इसके पीछेमनुष्य का थिाभाविक मनोविज्ञान है| प्रश्न एक अवभरुवि हैऔर उत्तर द्रविकोण | द्रविकोण से आशय है कक हम प्रश्न का उत्तर ककस सन्िभा में खोज रहे है| यकि उत्तर वजज्ञासािश खोज रहे है तो िह उत्तर कल्याणकारी होगा अन्यिा पठरणाम क्या वनकलेगा? सत्यता ककतनी होगी? ईश्वर ही जाने| इसवलए हम अपने प्रश्नों का उत्तर वजज्ञासािश ही खोजेंग | अपने प्रश्न की खोज में िलने से पहले रामधारी ससंह किनकर जी के उस भाि को याि करते हैजहााँ िो “आधुवनकता और भारत-धमा ” केविषय में कहतेहै कक “प्रत्येक समय में समाज के सामने हमेशा से ये िुनौती रही हैकक िो ककस समाज को आिशा माने?, िो ककस समाज को आधुवनक मानकर आगे बढ़े? क्या उसके सामने ककसी आिशासमाज का कोई मापिंड है या िह वसिा एक कििा-थिप्न” है| तो उसका उत्तर उन्हें “भारतीय समाज” में वमलता है| यह हम सभी थमरण रखें जब पठरितान के वलए समय कुलांिे भरता है तो भारत-भूवम के ऋवष “भारतीय युिाओं” का आव्हान करते है| ये िो शब्ि थमरण रहे- भारतीय-समाज, भारतीय-युिा | मैने थमरण रखने का आग्रह इसवलए ककया है कक हम अपने विषय का “समग्र सिंतन की धारा में प्रिाहमान” होकर अनुसन्धान करेंगे| सामान्यतः ककसी भी विषय को समझने के िो माध्यम है विषयानुगत अिाात सैधांवतक, बाह्य, िथतुपरक या थ्योरीटीकल िूसरा व्यिहाठरक अिाात प्रायोवगक, आंतठरक, आत्मवनष्ठ या प्रैवक्टकल अध्ययन या अनुभि प्रावि के िो मागासिािा प्रिवलत है थ्योरी और प्रैवक्टकल| अपना विषय समझने में वजतना सरल है, इसका पालन करना उससे भी अवधक सरल हैI पानी का िहर जाना सरल है या उसका बह जाना? पानी रोकने के वलए प्रयास करना पड़ता है ककन्तु बह जाना उसकी प्रिवत्त है| उसी प्रकार भारत को विषयानुगत अिाात थ्योरी को समझनेमें प्रयास करना पड़ेगा ककन्तु यकि हम भारत के व्यािहाठरक अिाात प्रैवक्टकल रूप में जाए तो मेरा अनुभि कहता है कक हमे कोई प्रयास ही नही करना है ! जब हम भारत को विषय मानकर समझेंगे तब भारत को शास्त्रािा करते हुए “तका” के आधार पर जानेगेंऔर जब भारत को जीिंत मानकर व्यिहार के माध्यम सेसमझेंगे तो “अनुभूवत” के आधार पर जानेगें| तका में हम अलग-अलग घटनाओं को आधार मानकर भारत की व्याख्या करने का प्रयास करेंगे और अनुभवत में भारत को अपने जीिन से आत्मसात करेंगे| समग्र सिंतन की इस धारा में इसकेिोनों पहलुओ “ितामान और इवतहास” पर भी वििार करेंगे- | जो पल बीत गया इवतहास हो गया| ितामान की यात्रा तक हम इवतहास भी िेखेंगे कक ककस मागा सेहोते हुए हम यहााँ पहुिें? ितामान की बात करते हुए “आधुवनकता तिा जीिन की आिश्यकताओं” की बात भी करेंगे और इवतहास की बात करते हुए “मूल्यों और संथकारो” की बात ही करेंगे| इवतहास में जहााँ नैवतकता, सौन्ियाबोध, आध्यात्म, ज्ञान और संथकारो का बाहुल्य है िही ितामान में राजनीवत, रोजागर, सत्ता-शासन, सुविधा, आधुवनकता और पठरभाषाहीन विद्रोह की ििाा का ही आिरण है| इवतहास मेंजहााँ भारत का जीिन समग्रता की और िलता हैिही ितामान भारत आधुवनकता के नाम पर विद्रोही पठरितान की और िलता है | जीिन की रफ़्तार बढ़ िुकी है | हमे थियं की अनुकूलता तत्काल िावहए | ितामान भारत अिाशास्त्र, राजनीती शास्त्र, सामावजक शास्त्र, विज्ञान, तकनीक, रोजगार, सैन्य व्यिथिा, अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध और व्यापार की बात करता है, आर्टाकल 370 की ििाा करता है िो परम्पराओं और रीती-ठरिाजो में थिावपत मान्यताओं की सीमाओ को वखसकाना िाहता है | समय और समाज अपनी गवत से िल रहा है लेककन लोगो का सामूवहक रूप सेजीिन के लक्ष्यों केप्रवत द्रविकोण समाज में आिरण का वनमााण करता है जो िेश का तात्कावलक थिरूप वनधााठरत करता है| बहुधा इसी आिरण के कारण से संवधकाल का वनमााण होता है वजस कारण समाज का थिरूप बिलता हुआ किखाई िेता है | अब यही िुनौती हमारे सामने आती है कक ककस भारत के बने? और कौन-सा भारत बनाए? इवतहास में गए तो आधुवनकता की िौड़ में अछूत हो जायेगे, वपछड़े कहलायेंगे, पोंगा-पंिी और ना जाने कौन-कौन से आभूषण पहना किए जायेंगे और ितामान वहसाब से िलेतो औगोवगकरण का पयाािरण पर आघात, िूवषत मानवसकता के कारण बढ़तेअपराध, उपभोगतािाि का कुठटल-िक्र, रोग हमारे और आने िाली िाली पीढ़ी के वलए अवभशाप बन रहे है? यकि इन सब विषयों पर हम व्यािहाठरक या आत्मवनष्ठ रूप से िले तो विज्ञान-विरोधी और अन्धविश्वासी कहा जाएगा और यकि विषयानुगत या िथतुपरक रूप से िले तो समुद्र की ककनारे पर बैि तैराकी वसखने जैसी कल्पना मात्र ही होगी | हम इन्ही उलझनों से बाहर वनकलेंगे पहले हम भारत को एक विषय मानकर समझते है, बौविक रूप से, विषयानुगत तरीके से- जैसे अनाज का उत्पािन करने के वलए बीज, हिा, पानी, खाि और सूया केप्रकाश जैसे कई अन्य तत्िों के "उपयुक्त संयोग" की आिश्यकता होती है उसी प्रकार भारत को विषयानुगत तरीके सेसमझने के वलए कु छ संयोग समझने होंगे, जब इन संयोग को समझ लेंगे तब भारत को जान भी लेंगे और जानने के बाि भारत के बन भी जाएंगे I लेककन हमारे बनने के बाि हम भारत को कैसे बनाएंगे? इसके वलए हमे समझना होगा कक जब यातायात के वनयमो का ज्ञान होने के बाि भी लोग गलत किशा में िाहन िलाते है, तो िो जानते है कक इस िजह से जाम लगेगा, एक्सीडेंट हो सकता है, िुघाटना हो जाएगी, िालान कट सकता है किर भी ये वसलवसला रुकता नही और कु छ की िजह से सभी िुख पाते है| िैसे ही जब तक भारत के बन जाने के बाि भी हम भारत को यकि अपने जीिन मे नही वजएंगे, उसे अपने जीिन मे नही उतारेंगे तो भारत को नही बना पाएंगे और भारत की उपयोवगता को समझे वबना उसे बिा भी नही पाएंगे। यकि हमने भारत की महत्ता अपने जीिन में समझ ली तो हमे ककसी प्रकार का द्वंध नहीं रहेगा | सभी सम्भि प्रश्न भारत के विषय मे में पूछे जा सकते है कक भारत.. क्या, कब, कैसे, ककसका, कौन, कब-से... आवखर ककसी भी विषय को समझने का प्रािवमक माध्यम है प्रश्न पूछना | जब प्रश्न है तो उसका उत्तर भी खोजा जायेगा और जहााँ उत्तर होगा िहां तका भी होगा तो हमे तका को समझने और समझाने की क्षमता भी उत्पन्न करनी पड़ेगी क्योकक तका समझने के बाि भी विरोधी के मनोवथिवत बिलना कठिन ही होता है | इस तार्काक िाताालाप को विषयानुगत तरीके सेआगे बढ़ातेहै- जो भारत शब्ि है इसके अलग-अलग अिा हमे पता है, जो प्रकाश की और रत है िो भारत है या शकु न्तला और िुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर भारतिषापड़ा | क्यों पड़ा? क्योकक उसने बिपन में ही शेरो के िांत वगन वलए िे, इसीवलए पडा? हम सबने ये कहानी सुनी है| भौगोवलक थिरूप की बात करें तो विष्णु पुराण कहता है उत्तरं यत समुद्रथय, वहमाद्रेश्चैि िवक्षणं | िषा ति भारतं, नाम भारती यत्र संतवत अिााता जो समुद्र के उत्तर में और बिीलेपिातों वहमालय के िवक्षण में वथित हैउसका नाम भारत है और यहााँके रहने िाले लोग उसकी संताने है | अरबो ने ससंधुनिी के नाम पर सहंिूभूवम या वहन्िुथतान कहा ककन्तु ब्रहथपवत आगम कहता हैवहमालयं समारम््य यािि् इन्िु सरोिरम | तं िेि वनर्मात िेशं, वहन्िुथिानं प्रिक्षते।। अिाात वहमालय से लेकर इन्िु (वहन्ि) महासागर तक िेि पुरुषों द्वारा वनर्मात इस भूगोल को वहन्िुथतान कहते है| ससंधुको अाँग्रेजी में इंडस कहते हैं। वजसके कारण भारत को अंग्रजो ने इवडडया कहा | यह भी कहा जाता है कक यह आयों की अिााता श्रेष्ठ लोगो की भूवम है इसवलए इसे आयाािता भी कहा गया लेककन इन सभी में भारत नाम सबसे अवधक प्रिवलत हुआ लेककन वजस िेश या भूभाग पर राजा भरत के माता-वपता शकु न्तला और िुष्यंत रहा करते होंगे उस िेश का नाम क्या िा? नाम को लेकर ये एक तका आता है| अगर हम इस प्रश्न में ज्यािा पीछे नहीं जाते तो आज से २३०० िषा पूिा मौया,िोल, पंडया और सत््पुत्रो साम्राज्य कहााँ हुआ करते िे? क्या िो वसिा साम्राज्य िे? क्या िो भारत नहीं िा? जो शक और हूण जैसेबबार लोग वजस भूवम पर आकर यही समा गए िो ककसके हुए? िो कहााँ विलीन हो गए? आधुवनक इवतहास में हम पढ़ते है कक सन 1947 सेपहले सौराि, मराििाडा, वित्तौड़, जयपुर, मालिा जैसी 500 से अवधक अलग-अलग ठरयासते हुआ करती िी वजनका १९४७ में भारत गणराज्य के रूप में एकीकरण हुआI जैसा कक कु छ तिाकवित पवश्चम प्रभावित इवतहासकार कहते है कक भारत का जन्म ही १९४७ में हुआ | वजस मानवित्र को हम िेखते है क्या िही हमारा भारत है? ककसी बच्चे से पूछो कक भारत क्या है तो सामान्यत उसका उत्तर होंगा कक भारत एक िेश का नाम है और एक कागज पर नक्शा बनाकर किखा िेगा कक िेखो, ये रहा भारत लेककन जो आज भारत की कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से परशुराम कुंड तक जो सीमाए है िो आज से २३०० िषा पूिा िो अिगावनथतान से श्रीलंका और पवश्चम में िारस की खाड़ी से लेकर कम्बोवडया तक िी तो किर िो क्या िा? यकि िो भी भारत िा तो आज ये भारत का ये भौगोवलक थिरूप कैसे हो गया? वजसे हम मृत्युन्जय भारत कहते है क्या हम उस भौगोवलक थिरूप को मृत्युन्जय भारत कहते हैवजसका थिरूप यिा-किा बिलता रहा? वजसे विश्वगुरु भारत कहा गया िो क्यों कहा गया? और आवखर ये विश्वगुरु का थिान ककसने किया और ककसने िो थिान भारत से ले वलया या हमने थियं ही खो किया? आवखर ककस भारत का सीमाएाँ वसकुड़ गयी और ककस भारत का विभाजन हुआ और कौन सा भारत खो गया वजसका हमे बनना है और वजसे हम बनाने की कोवशश में है? क्या ये सब एक वनवश्चत भौगोवलक थिरूप को प्राि करनें का प्रयास है? यहााँ एक प्रश्न के उपर आपका ध्यान ले जाना िाहूाँगा कक िो क्या कारण िे वजन िजहों से हम आज यह कहते है तब केभारत का विथतार ककतना िृहि िा और आज उसकी सीमाए वसकुड़ गयी? आवखर हम ऐसा क्यों कहते हैकक बाहरी आक्रमणों ने भारत की सीमाओं को संकु वित कर किया, भारत का विभाजन हो गया| क्या यह सि है? क्या वनवश्चत भौगोवलक सीमाओं में बंधा हुआ भूभाग भारत है वजसे हमे किर से प्राि करना और इसी भूभाग का बनना है? भारत को तका रूप में जानने-समझने के वलए ये सभी प्रश्न हमारे सामने आते हैऔर आते रहेंगे और इनका उत्तर हमे खोजना हैऔर यह खोज आिश्यक है| वजस भारत-भूवम पर अितठरत यजुिेि ने कहा कक श्येनो भूत्िापरां पत यज्ञमानथय गह्िान, गच्छ तन्नौ संथकृतम्- अिााता िेशांतर में जा जाकर ऐश्वया युक्त बनो और िूसरों को ऐश्वयायुक्त बनाओ, वजस भारत में सम्पूणा पृथ्िी को कु टुंब िसुधैि कुटुम्बकम की संकल्पना िी, वजसने पुरे विश्व को श्रेष्ठ क्रन्िंतो विश्वमायाम का वसिांत किया जो भूवम सिे भिन्तु सुवखनःसिे सन्तु वनरामया का उद्घोष करती है उस भारत भूवम को ककसी भौगोवलक सीमा में बंधना ककतना उवित होगा यह वनणाय ितामान पीढ़ी को करना है? “वजतने भी प्रश्न हमारेसामने आयेऔर वजतने भी भािो, मूल्यों और संथकारो को हमने अपने बड़ो से या पठरिारों में सीखा है िो सब ककसी सीमओं में बंधे हुए भारत के नहीं हो सकतेयकि हम भारत को सीमओं में बााँध िेंगे तो तो तका से भी हम भारत को ना जान पायेंगे ना समझ पायेगे|” वजतने भी प्रश्न हमारे मन-मवष्तष्क में आते है उनका उत्तर इस भौगोवलक थिरूप के तका-विताक से खोजना असंभि सा प्रतीत होता है | यकि तका या प्रश्न के आधार पर समझना हो तो कुछ घटनाओं को िेखना होगा कक जब एक आिाया केरल से िलकर काशी होते हुए बद्रीनाि पहुंिकर शंकरािाया पीि की थिापना करते हैऔर उसे हर कोई थिीकार करता है, जब एक िाणक्य सेिक बालक िन्द्रगुि को िक्रिती घोवषत करता है, जब एक मयाािा-पुरुषोतम राम शबरी की कुठटया तक पहुितेंहै, जब मााँ जानकी वबना िीसा वलए अयोध्या आकार हम सबकी जननी कहलाती है, जब एक सुिामा कड़िेिनो की िजह सेबाल-थिरूप योगेश्वर कृ ष्ण से झूि बोलता है, जब भील सरिार एक मेिाड़ी महाराणा की रोटी केवलए अपनी बेटी का बवलिान िेता है, जब जीजा मााँइस सम्पूणाधरा केअपमान का बिला लेने के वलए भिानी से पुत्र रत्न का िरिान मांगती है, जो िीरांगना हाडा रानी इस भूवम रक्षा के वलए युि भूवम में गए हुए अपनेपत्नी के प्रवत आसक्त पवत को अपना शीश काटकर भेजती है, जो तंजािुर आज भी काशी विश्वनाि का श्रृंगार वपछले हजारो िषा से भेजता है, जो कुम्भ इस करोडो की जनसाँख्या को वबना ककसी प्रश्न के समावहत कर लेता है क्या उस भारत को तका के आधार पर या भूवम पर सीमांकन करके जाना या समझा जा सकता है? कैसे एक राजा वशिी एक बाज से कबूतर को बिाने के वलये अपने शरीर का मास काट-काट कर तौलते है, कैसे एक गुरु गोविन्ि ससंह उस सिा लाख आताताईयो से अपने उभरते हुए सुकु मारो के लड़ने भेज िेते है? अभी तक यह तो हम समझ ही िुके होंगे कक ये जमीन के टुकड़े का विषय नहीं है| जैसा कक मैंने पहले ही कहा है कक हमे भारत को “समग्र” रूप से समझना है| तो अब हम पठरभाषा पर आते है| हम भारत को राष्ट्र कहते है, हम भारत जीिंत कहते हैअिाात भारत एक नाम है जो राष्ट्र है| मूधान्य लेखक बाबु श्याम सुंिर िास कहते है कक ककसी राष्ट्र के वनमााण के तीन मुख्य घटक होते है 1. भूवम 2. लोग 3. संथकृवत इन तीनो के “व्यिवथित सम्मुिय” से राष्ट्र का वनमााण होता है किर आप राष्ट्र को जो िाहे नाम िे िीवजये | इन तीनो में 2 भौवतक है किखाई िेते है, 1 सुक्ष्म है, किखाई नहीं िेता, अनुभि होता है| इसीवलए मैंने कहा िा कक ककसी भी विषय को समझने के िो माध्यम हैअभी हम उन सभी प्रश्नों का वििार करें जो मैंनेआपके सामने रखे िे | उनका उत्तर ना भूवम में है ना लोगो मेंहै, उनका उत्तर संथकृ वत में है ध्यान रहे रीवत-ठरिाज, बोलिाल, पहनािा, रंग-रूप, भाषा-बोली, पूजा पिवत इत्याकि ये सब िेशकाल और पठरवथिवत के अनुसार स्यता का वनमााण करती है जो समय-समय पर बिलती रहती है ककन्तु संथकृवत और अवधक सूक्षम है | संथकृवत इतनी सुक्ष्म है जैसे इंधन में अवि | और इंधन बनने में ककतना िक्त लगता है हजारो-लाखो साल | िैसे ही हजारो- लाखो साल की स्यताओ के सव्श्रेथि आिरण से संथकृवत का वनमााण होता है| अब यकि भारत को सांथकृवतक रूप से समझना है तो किोपवनषि के एक सूक्त को ध्यान में रखकर राम के आिरण को समझना होगा और राम आिरण समझने के वलए हमे थियं राम बनना होगा किोपवनषि कहता है- यथय यान््थमाकम सुिाठरतानी, तावन सेव्तानी, नो इतरानी वजसमे जहााँ से जो अच्छा है थिीकार कर लो, सुरवक्षत कर लो, और उस पर अहंकार मत करो | िेखा, एक सूक्त में सारा द्वंध समाि | वजतना तका लगाकर समझना है, समवझये | लेककन उपवनषि कहता है ब्रहाम्िैत ब्रह्म भिवत वजसने ब्रह्म को जान वलया िो ब्रह्म हो गया किर िो हमे बताने के वलए िावपस नहीं आएगा कक ब्रहम का थिरूप कैसा है? राम को जानना है तो राम के आिरण का पालन करो राम बन जाओगे राम को पहिान जाओगेऔर राम को हम क्यों जानते है, राम को हम उसके गुणों के कारण जानते है अिाात हमें गुणों की साधना करनी पड़ेगी इसवलए तका या सापेक्ष रूप से भारत को जानने के वलए भारत का बनना पडेगा और भारत का बनने के वलए थियं भारत हो जाना पड़ेगा और उन गुणों को थियं में धारण करना पड़ेगा | गुणों को धारण करने हेतु हमे उस आधार का वनमााण करना पड़ेगा जहााँउस भव्यता का वनमााण करेंगे| उपवनषि कहता है- यो मामेिमसंमूढो जानावत पुरुषोत्तमम् | स सिा विभद्जती मां सिाभािेन भारत || अिााता सिा-भाि सम-भाि में जीने िाला भारत इवत गुह्यतमं शास्त्रवमिमुक्तं मयानघ | एतिबुिािा बुविमानथयात्कृ तकृ त्यिश्व भारत || अिााता बुविमान वििेकिानो का सम्मान करने िाला भारत जब हम गुणों की साधना कर लेंगे, हम भारत के बन जायेंगे हम थियं भारत हो जायेगे, यह हमारा भारत को जानकर भारत के बनने और भारत को बनाने का सापेक्ष माध्यम होगा| यह हमने भारत के िथतुपरक ढंग से तकाके आधार पर इवतहास के िपाण में समझने का प्रयास ककया है| इसी सापेक्ष माध्यम में पयाािरण, जल-जंगल, जमीन और उन प्राकर्ताक उपहारों के साि समन्िय बैिकर आगे बढ़ना ही सिागुण संपन्न भाि से आगे बढना हैये पयाािरण भारत भूवम का श्रंगार है नकिया इसकी जीिनिायनी है जब हम भारत को तका के आधार पर समझते है तो हमारे आसपास पयाािरण हमने उन महान पुरुषो के आिरण का अनुसरण करने में सहायक वसि होता है I जब हम भारत को िथतुपरक ढंग से तका के आधार पर ितामान मेंसमझने का प्रयास करते है तो हम कु छ घटनाये पाते है कक कैसे राह गुजरते हुआ एक राहगीर आधी रात के अाँधेरे में िरिाजा खटखटा कर पीने का पानी मांगता है तो गृह थिामी अपनी गृह थिावमनी से कहता है कक कु छ खाने का हो तो जल्िी से बना िे, कही रात में खाली पानी पीने से पेट ना िुखने लगे-ये संथमरण थियं पंवडत िीनियाल उपाध्याय जी वलखते है| ये जो भाि है इसे ककसी तराजू या मीटर पर नहीं नापा जा सकता , पवश्चम को ये समझ नहीं आयेगा कक इस काम से उसे ककतने पैसे वमले? या वबना पैसे के ये काम उसने कैसे ककया? सडक पर 2-2 रूपये में के ले बेिने िाली मवहला 10 रूपये में 6 के ले िेने से मना कर िेती है लेककन एक भूखे बच्चे को िेखकर 2 के ले उसे खाने को िे िेती है और जब उसका ग्राहक उससे पूछता है कक िो तेरा ठरश्तेिार िा क्या? जो फ्री में िे किए तो मवहला कहती है “भूखा िा िे किए, इसमें क्या सोिना” | IIM के प्रोिे सर को भी यह घटना समझ नहीं आती, उसे समझ नहीं आता कक अगर ऐसा होगा तो ये एकोवनमी कैसे िलेगी? अब आप इसकी क्या पठरभाषा िेंगे? येपठरभाषा बस भाि में समझी जा सकती है | लेककन जब मागारेट थ्रेिेर भवगनी नेविकिता बनकर आती है तो ये भाि वसिा भारत का नहीं रह जाता ये भाि हर जगह कण कण में विद्यमान है और इसीवलए ये भारत सीमओं ना बस कर लोगो के ह्रिय में बसता है| हम इवतहास की बात करें या ितामान की बात करें, तका एक आधार पर हमे भारत एक-सा ही किखाई िेता है | जब हम कुछ कटु-घटनाओं का उिाहरण िेखते है तो उन घटनाओं के प्रवतकार में भी भारत के मौवलक वसिांत किखाई िेते है | इसके उपरांत जब हम भारत को व्यिहाठरक या आत्मवनष्ठ थिरूप में समझते हैतो हमें हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर वमलते िले जाते है| प्रािीन िणान में जब िाह्यान भारत आया तो िो वलखता है कक भारत में घरो पर ताले नहीं होते, भारत में लोग वशवक्षत है, लोग िोरी नहीं करते | िो ज्ञान की खोज के वलए सैिेि प्रयासरत रहते है | और ऐसा वलखने िाला ये अके ला नहीं है मैवथथथ्नज से लेकर मैकाले तक ना जाने ककतने लोगो ने यही बात वलखी | वनवश्चत ही यही िो बात रही होंगी वजसने भारत को विश्वगुरु का थिान किया | अगर हम भारत के इवतहास में जाएाँ तो येहम सब के वलए एक प्रेरणा थिरूप पन्नाधाय भारत भूवम के वलए अपने पुत्र का बवलिान िे िेती है?, कैसे एक प्रकांड आिायाएक डोम को अपना गुरु थिीकार करता है?, कैसे आज जापान, अमेठरका और रवशया जैसे िेशो में भारत बसता है?, कैसेउस गैर-भारतिासी भी काशी हठरद्वार के तटो पर जाकर अपना डेरा बसाते है| अभी तक हमने भारत को िूसरे के द्रविकोण से ही िेखा है, हमने भारत की संकल्पना को पवश्चम की “नेशन थ्योरी” से तुलना ककया है राष्ट्र की संकल्पना में भूवम, लोग और संथकृ वत का संयोग राष्ट्र का वनमााण करता है| जब भारत आने िाले वििेशी यात्री से पूछते हो तो िो कहते है जो अपनापन और थितंत्रता उन्हें यहााँ अनुभूत होती है िो कही और नहीं होती | ये सथता टूठरज्म नहीं है| ये हम सबके वलए एक मनुष्य केथिाभाि का अन्िेषण है कक कैसे शक-हुण-कुषाण इस भारत में विलीन हो गए | कैसे एक वसद्दािाराजवसक जीिन छोड़कर बुि बन जाता है | भारत से आज ितामान में विश्व के वलए जो आश्चया कोई किल्ली मेट्रो या साइबर वसटी ना होकर काशी की गवलयों में वमलने िाला प्रसाि, हठरद्वार की गंगा आरती, यहााँ का ज्ञान, संतोष, व्यिहार और समाज जैसे सैकड़ो कारण है| िो िेखता है कक कैसे प्रयागराज कुम्भ में एक किन के वलए विश्व का 9िााँसबसे बड़ा िेश बन जाता है कैसे लोग एक िुसरे सेवमलकर सुख-िुःख में साि िलते है, कैसे लोग लेने से अवधक िेने के भाि में विश्वाश रखतेहै, ये हमारा विश्व-बंधुत्ि का ही भाि है जो सिासमािेश की बात करता है, ये िही भारत है जहााँ संघ के वद्वतीय सरसंघिालक वसिा एक कायाकताा के प्रेम के िशीभूत होकर िाय पीना प्रारंभ कर िेता है जहााँ मीरा के वलए विष का प्याला विष शून्य हो जाता है | यह भारत को ितामान और इवतहास के िपाण में व्यािहाठरक रूप से अनुभूवत है जहााँ हम थियं भारत बनकर जीते है | भारत के जीिंत और गवतमान होने का अिा है कक भारत का प्रत्येक क्षण नि-सजान होना, नयी वजज्ञासाओं का जन्म होना, क्यों भारत विश्वगुरु हुआ?, क्यों यहााँ की प्रकवत शश्यश्यामला हुई?, कैसे बंककम िन्द्र ने बंगाल को िेखकर एक गीत में सम्पूणा भारत का प्रवतवनवधत्ि कर किया? क्यों यहााँ संगीत की साधना हुई?, क्यों यहााँ ज्ञान-विज्ञान की खोज हुई? क्यों ऐसा पवश्चम में नहीं हुआ? क्यों हमने बबारता नहीं सीखी? क्यों अयोध्या के श्री राम आज बंगाल के जन-जन ह्रिय में बसते है? क्यों भारत में महाभारत का उिय होता है? कैसे झारखडड के जंगलो में धनुष-कमान को उनके आराध्य का प्रतीक मानकर पूजते है? कैसे िेशभर का जनसमुिाय ने एक भाि से भारत माता की जय बोलकर 1300 िषो केअवतक्रमणकठरयो से मुवक्त पायी? कैसे द्वािश ज्योवतर्लिंग ने हममेंएक सह-अवथतव्त का भाि जगाया? इन सब विषयों के वलए हमे अपने मूल सिंतन पर लौटना होगा | इसवलए पवश्चम की राष्ट्र की अिधारणा से भारत की राष्ट्र की अिधारणा अलग है| कैसे पवश्चम का किलोसिर भारत िाशावनक से वभन्न है? कैसे भारत का धमा पवश्चम के ठरवलजन से अलग है? इसीवलए जब हम भारत को मृत्युन्जय भारत कहते है तो तब हमे यह बात समझ आती है, जब हम भारत को सांथकृ वतक इकाई बोलते है तब अभारतीय इस बात को समझ नहीं सकता | िो यह यह नहीं समझ सकता कक क्योकक रामधारी ससंह किनकर कहते है कक मुझे तोड़ लेना िनमाली उस पि पर तुम िेना िें क वजस पि पर शीश िढाने जाते हो िीर अनेक , िो थियं को एक िू ल कहता है और राष्ट्र के िीरो के पि मागा पर न्योछािर हो जाना िाहता है क्या | क्यो मैिली शरण गुि वलखते है कक वजसको न वनज गौरि तिा वनज िेश का अवभमान है िह नर नहीं, नर पशु वनरा है, और मृतक समान है जो भरा नहीं है भािों से, बहती वजसमें रसधार नहीं। िो हृिय नहीं है पत्िर, वजसमें थििेश से प्यार नहीं। क्या यह भाि हम ककसी पैमाने पर नाप सकते है, क्या इनका िजन तौल सकते हैबस इन भािो में वजया जा सकता है| भारत की कै सी सुंिर पठरभाषा है भारत माता का मंकिर यह , समता का संिाि जहााँ | सबका वशि कल्याण यहााँ , पािे सभी प्रसाि यहााँ । जावत-धमा या संप्रिाय का नहीं भेि-व्यिधान यहााँ | सबका थिागत सबका आिर सबका राम सम्मान यहााँ। यह धमा हम ही समझ सकते है जहााँ योगेश्वर कृ ष्ण युि की विभीवषका में भी गीता का उपिेश सुनाते है यह धैया का ज्ञान भी हमारे ही पास है | हम जानते है कक सािे साियम समािरेत और शान्तं पापम अद्वेतम का सुक्ष्म विश्लेषण कर कैसे मध्यम मागा वनकाला जाए हम अपाण-समपाण, आख्या-व्याख्या का भेि जानते है तो वनवश्चत ही हम अपने वनणायों में वििेक का महत्त्ि भी जानते है| वजस पतंजवल योगसूत्र ने सुक्ष्म थतर पर अंतमान की यात्रा करने का माध्यम प्रिान ककया उसी माध्यम से हम भारत को अनुभि के थतर पर समझ सकते है क्योकक यह ज्ञान प्राकृवतक रूप में सतत रूप से हमारी िेतना में विद्यमान हैक्योकक भारत को अनुभि के थतर पर व्याख्या करना वजतना कठिन है थियं के अनुभि के थतर पर उसे आत्मसात कर लेना उतना ही सरल है अभी तक हमने भारत को जाननेके विषयानुगत और व्यिहाठरक माध्यम को “इवतहास और सावहत्य” के िपाण से “मूल्यों और संथकारो” के पक्ष में जाना है| अब भारत के इसी विषयानुगत और व्यिहाठरक माध्यम को “आधुवनकता तिा जीिन की आिश्यकताओं” के पक्ष में जानने का प्रयास करेंगेक्योकक आज हम “न्यू इवन्डया” की बात करते है और इस न्यू इंवडया में “द्वंध” का ही बोलबाला है| जो बातेमैंनेभारत के इवतहावसक पक्ष के बारेमें कही िो सब आज के समय में मध्यकालीन, पोंगा-पंिी या वघसे-वपटे वििार ही कहे जाते है| यकि इस समय को वििारो का संक्रमण काल कहा जाए तो अवतश्योवक्त नही होगी हर िीज़ या वििार की उपयोवगता की समीक्षा “आधुवनक या बेकार अिाात आउटडेठटड” में होती है| समाज में प्रािवमकतायेंबिल िुकी है, युिाओं के जीिन का द्रविकोण बिल िुका है| मनुष्य का जीिन नैवतकता, सौन्ियाबोध और आध्यात्म से बिलकर राजनीती, रोजगार, सत्ता-शासन, जीडीपी, इंडेक्स, आंतठरक और बाह्य सुरक्षा, अन्तठरक्ष अनुसन्धान की और जा िुका है| युिा पीढ़ी क्रवन्तकारी ढंग से बिलाि िाहती है| िैवश्वक षड्यंत्र हमारी थिाभाविक गवत को अिरुि करते है, धार्माक आंतंकिाि और कट्टरता िुनौती के रूप में हमारे सामने है पयाािरण केकारण बिलता िक्र हमारे सामने है, उपभोक्तिाि की अंधी िौड़ में हम सब शावमल हो ही िुके है आज का युिा सैन्य व्यिथिा, लैंड ठरिॉम्सा, अिानीवत, मौवलक अवधकारों, अंतराष्ट्रीय संबंधो, अंतराष्ट्रीय व्यापार जैसे मुद्दों पर बात कहना िाहता है | आधुवनता की िौड़ में सभी सहभागी है लेककन हमे िैवश्वक िौड़ में भी बने रहना हैऔर अपने भारत को भी बनाना है | मध्यम मागावनकालना है | डरना नहीं हैसंसार का कोई भी युग युि, जय-पराजय या क्रांवत के कारण आरम्भ नहीं होता िो नए लोगो के नए वििारो के प्रवत समपाण से होता हैजैसे पंवडत मिनमोहन मालिीय जी डॉ आंबेडकर के साि खड़े हुए जो लक्षण हमारे सामने है िो िैज्ञावनक द्रविकोण प्रािवमकता और प्राबल्य है क्योकक उसने सुविधाभोगी जीिन किया है टेक्नोलॉजी और उद्योग इसी द्रवि के पठरणाम है| ितामान में हम सुिना की क्रांवत िेखते है हर व्यवक्त के पास हाि में सूिनाओ का भंडार है और यह सुिना की ही क्रांवत का ही पठरणाम है कक हम “नेरठटि” सेट करने के युग में प्रिेश कर िुके है | इस युग जो धड़ा थिापनाओ के विरुि है िो सिंतन में वनमाम है, वनष्ठुर है | जो बात बुवि की पकड में नहीं आती िो उसे नहीं मानता, जो बुवि से सही किखाई िेती है िः उनकी खुली घोषणा करेगा िाहे िो धमा के विरुि हो, नैवतकता के विरुि जाती हो िाहे उनसे समाज के प्रेम का तानाबाना खंड-खंड होता हो | लेककन यह बात सत्य नहीं है कक आधुवनकता या न्यू इवडडया नीवतक वनयमो की अव्हेलना करता है माता-वपता के साि िुव्यािहार भी न्यू इवडडया नहीं है | मंकिरों में शराब या मांसाहार भी न्यू इवडडया नहीं है | यकि इन सब विषयों से उपर उिकर हमे भारत का बनना है तो थियं में नेतृत्ि की क्षमता विकवसत करनी होगी यकि िो नेतृत्ि राम और हनुमान का नेतृत्ि है वनवश्चत ही हम भारत बनायेंगे | हमे पयाािरण के प्रवत जागरूक होना तो हम भारत के बनेंगे और भारत को बनायेगे | हमे अपने व्यिसाय में थियं भामाशाह बनकर खड़ा होना होगा तभी हम आधुवनक महाराणाओ को सहयोग कर पायेंगे | हमेवशवक्षत होना होगा ताकी इस उपभोगतािाि की िौड़ में हम थियं को सुरवक्षत रख सकें | हमे जानना है कक िैिाठरकता और वनष्ठाओं में राष्ट्र को लेकर घटती सिंता और क्षुद्र राजनीवतक और वनजी थिािों के धुएं की धुंध से कुंठित हो रही सोि को थितंत्र करना होगा तब हमारा भारत बनेगा | आज राष्ट्र की अिधारणा को संकु वित करने में एक िगा अपनी बहुत ज्यािा ऊजााखिा कर रहा हैउस राष्ट्र के प्रत्येक अियि को पुनः जाग्रत करना होगा | वजसे यह लगता है कक राष्ट्र की अिधारणा को खंवडत ककए वबना िेश का विकास नहीं हो सकता ऐसे थियं की साधन से उिाहरन थिावपत करने होंगे | एक िगा यह समझाने में भी जुटा है कक राष्ट्र की बजाय एक खास वििारधारा के जठरए ही िुवनया में सुख-शांवत लायी जा सकती हैलेककन भारत की अपनी गवत है िह िेि तुल्य मानिो की िेि भूवम ही है| बाह्य वििारो की पीड़ा ही यही है हम अपने अवथति को इवतहास में खोज लेते है क्योकक वजसका जन्म पहले हुआ िही तो बड़ा होगा तो पवश्चम के िेश यह कैसे थिीकार कर ले कक भारत बड़ा है| यकि हमे भारत का बनना है तो रक्षा, सुरक्षा, कृवष, व्यिसाय, खेल, वनमााण के क्षेत्रो में हमे अपनी उपवथिवत िजा करनी होगी जहााँखड़े होकर हम भारत का वनमााण कर सकें थियं को प्रत्येक क्षेत्र में शवक्तशाली बनाना होगा ताकक न्याय का साि िे सकें | हमारी अपनी वशक्षा के प्रवत द्रविकोण थपि होना िावहए कक ककस वशक्षा की हमे आिश्यकता है | अभी तक हमने रथसी को सांप समझा है लेककन सांप को रथसी समझने की गलती ना करें | कताव्य और सिािार मागा में आपका कोई बाधक नहीं है जो लोग ककंकत्ताव्यमूढ़ बैिे है उनके पास वसिा एक बहाना होगा कक हमारे पास साधन नही है या उद्यम की शवक्त नहीं है | ये साधन या उद्यम का नही होना वसिा भाथय के भरोसे बैिे रहने का पठरणाम है ये भारत वनरुद्यमी लोगो का भारत नही है भाथय के विरुि पुरुषािा की मवहमा सिैि से रही है कणा कहता है िैिायत्तम कुले जन्म मियात्तम तु पौरुषम हमे एक पौरुष प्रधान समाज के द्वारा भविष्य का मागा प्रशथत करना है | िल्डाकप जीतकर उसे थिीकार करनेसे पहले शैम्पने की बोतल खोल कर पठरभाषाहीन अिखेवलया करना आधुवनकता या न्यू इवन्डया नहीं है िह सरलतापूिाक भी थिीकार ककया जा सकता है क्योकक जो लोग उन्हें आिशा मानते है िे उनके जैसा ही किखने का प्रयास करते है इसी वलए हमने राम के भारत को आिशा मानकर उसे जीिंत माना है| “इस पुरे विषय का यकि संक्षेप में समझे तो जब आप ककसी प्रश्न की खोज प्रारंभ करते है तब आप भारत के बन रहे होते है और जब आप उस ज्ञान-विज्ञान, आिार-वििार, व्यिहार, सिािार को अगली पीढ़ी को उसकी पूणा शुिता में वनष्ठा के साि थिानांतठरत कर रहे होते है तब आप भारत को बना रहे होते है |” इतना ही सरल है भारत | अब यह वििार हमे करना है कक जैसा हमे होना िावहए क्या हम िैसे ही है या हम ककसी आिरण में जी रहे है? यकि ऐसा है तो इस आिरण से बाहर वनकले| हम भारत के बने जहााँ ज्ञान-विज्ञान की व्याख्या ना केिल सूत्रों से होती है बवल्क उसका प्रकृ वत के ऊपर पड़ने िाले प्रभाि को हम हम थियं की िेतना में अनुभूत करते है और भारत का बनाने के वलए कोई बाहर से नहीं आएगा हमे अपना िीपक थियं बनना होगा “आत्म िीपो भि” हम थियं भारत के बनेगेककन्तु इन सभी बातो को थिीकार करते समय हमे ध्यान रखना होगा कक हम वजस भारत को बनायें िह सिा के भारत से श्रेष्ठ हो, सिमुि ही श्रेष्ठ हो उसमे केिल सुख, सुविधा, थितंत्रता और भोग की द्रवि से ही श्रेष्ठ नही हो, बवल्क उसमे शांवत और संतोष का भी प्रािुया हो यही नेतृत्ि की साधना है जब एक िृक्ष से नए िृक्ष का जन्म होता है तो नए और पुराने िृक्ष में कोई वभन्नता नहीं होती शत-प्रवतशत िही गुण लेकर प्रकृ वत गुणों को सम्िर्धात करता हुआ िृक्ष इसी परम्परा को आगे बढाता है और सुंिर जंगल का वनमााण होता है| यही हमारे ितामान भारत की प्रकृवत होनी िावहए | मै पुनः िोहरा िेता हूाँ कक जब आप ककसी प्रश्न की खोज प्रारंभ करते है तब आप भारत के बन रहे होते है और जब आप उस ज्ञान-विज्ञान, आिार-वििार, व्यिहार, सिािार के ज्ञान को अगली पीढ़ी को उसकी पूणा शुिता में वनष्ठा के साि थिानांतठरत कर रहे होते है तब आप भारत को बना रहे होते है | जैसे एक िैज्ञावनक को बड़ी खोज करने के वलए एक संसाधनों से पठरपूणा एक प्रयोगशाला की आिश्यकता होती है िैसे ही भौवतक और सापेक्ष प्रयोग हेतु हमेअखंड भारत भूवम की आिश्यकता हैयही भारत के भौगोवलक थिरूप का महत्त्ि है तिा आंतठरक प्रयोग हेतु योग और आध्यात्म के ज्ञान से हम अपनी िेतना की संभािनाओं का अन्िेषण करते है| यही भारत के बननेऔर भारत को बनानें का मागा है | “एक बात थमरण रखना यकि हम अपने थियं के वििारो से प्रभावित होते है तो हम िाथति में भारत के युिा कहलाने योथय है” यकि आपमें प्रश्न की वजज्ञासा है तो यही से प्रारंभ होता है भारत का | वजस थिान पर भौवतक और आंतठरक अन्िेषण केप्रयोग िलते हो िो हमारा भारत है| एक उत्कृि प्रश्न का नाम है भारत और उसी प्रश्न के सुंिर वनरुवपत उत्तर का नाम है भारत | वजतना सुंिर प्रश्न होगा, उतना ही सुंिर उसका उत्तर होगा, उसी सुंिर उत्तर की खोज का नाम है भारत | जो प्रवतभा-रत है िो भारत है, जो शोभा-रत है िो भारत है जो प्रभा-रत है िो भारत है हमे इसी भारत का बनना है और ऐसा ही भारत बनाना हैऔर यह यात्रा विर काल तक िलती रहेगी ॐ आ नो भद्राः क्रतिो यन्तु विश्वतोऽिब्धासो अपरीतास उवििः सरल भाषा में कहें तो.... भूलोक का गौरि, प्रकृ वत का पुडय लीला-थिल कहााँ? िै ला मनोहर वगठर वहमालय और गंगाजल कहााँ? संपूणा िेशों से अवधक ककस िेश का उत्कषा है? उसका कक जो ऋवष भूवम है, िह कौन, भारतिषा है।

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