धर्म आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था

 वो कहते हैं.. मंदिर बनाने से कोई फायदा नहीं होता.... इससे अच्छा अस्पताल बनाओ.. स्कूल बनाओ.. Blah blah.


देखिये, आप स्कूल बनाइये, अस्पताल बनवाइये... उसमे कुछ गलत नहीं...लेकिन भारत जैसे देश में मंदिर बनान भी महत्वपूर्ण है, क्यूंकि हजारों सालों से हमारी अर्थव्यवस्था मंदिरों, त्यौहारो और धार्मिक अनुष्ठानो से ही चलती रही है.


जहाँ एक छोटा सा मंदिर भी होता है.... वहाँ अगल बगल पचासो दुकाने होती हैं.. एक स्थानीय अर्थव्यवस्था पनप जाती है. त्यौहारो पर लोग यात्रा करते थे, किसी ख़ास धार्मिक स्थान पर जाते थे.. वहाँ समय बिताते थे, खाना पानी, घूमना फिरना सब हुआ करता था... जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा का circulation हुआ करता था.


धार्मिक स्थलों के आसपास बाजार लगते थे, लगते हैं.... साप्ताहिक पैठ लगती थी, लगती है.. जिसमें स्थानीय लोगों को काम धंधा मिलता था. खाने पीने वाले, रहने की व्यवस्था करने वाले, गाड़ी घोड़े वाले, दूध मिष्ठान वाले, कपडे वाले, खिलौने वाले... फल सब्जी वाले.. और ना कितने सैकड़ों प्रकार के काम धंधे उत्पन्न हुआ करते थे..... मुद्रा circulate होती थी... लोग कमाई करते थे.. फिर खर्च करते थे... ऐसे ही आर्थिक चक्र चलता रहता था.


आज भी हमारे धार्मिक स्थल हमारी अर्थव्यवस्था की धुरी हैं. कुछ लोगों को यह मज़ाक लग सकता है... Propaganda लग सकता है... लेकिन इसे 2 उदाहरण से समझते हैं.


जब इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज रखा गया था... तब लोगों ने बहुत आपत्ति की.. लेकिन मैंने तब भी कहा था... कि प्रयागराज नाम में जो आकर्षण है... वह दुनियाभर से लोगों को यहाँ खींच कर लाएगा.. यह एक धार्मिक ब्रांड है.


प्रयागराज के नाम बदलने और इंफ्रास्ट्रक्चर development में 4 हजार करोड़ का खर्च आया था तब.... और प्रयागराज में जो कुम्भ हुआ था, उसमे करोड़ों लोग आये और सरकार को 1 लाख 40 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का राजस्व मिला था.


मतलब सरकार ने खर्च किये 4,000 करोड़.. और बदले में 1,40,000 करोड़ का राजस्व आया.... इसमें सरकार को अपने Investment से कहीं ज्यादा का Tax मिल गया होगा, वहीं लाखों लोगों ने भिन्न भिन्न कामों से अपनी साल भर की कमाई कर ली होगी.


दूसरा उदाहरण है बनारस का... महादेव जी की काशी का... यहाँ पिछले 6 सालों में इतने Domestic Tourist आये 


2017 ~ 59,47,355

2018 ~ 60,95,890

2019 ~ 64,47,775

2020 ~ 8,76,303

2021 ~ 30,75,913

2022 ~ 7,16,12,127


पिछले साल में काशी में इतने tourist आये हैं... जो पिछले 5 साल के tourist की संख्या को जोड़ कर, उसे तीन गुणा कर दें.. तो उसके बराबर है.


अब आप सोचिये कि पिछले कुछ सालों में काशी में क्या बदला है??


वहाँ बेहतर सड़कें हैं, बेहतर railway station हैं.... बाजार सुन्दर बना दिए गए हैं... घाट साफ कर दिए गए हैं.


लेकिन जिस एक चीज ने काशी में Tourists को खींचा है, वह है श्री काशी विश्वनाथ corridor..... जबसे यह बना है, काशी में पर्यटको का हुज़ूम उमड़ पड़ा है......7 करोड़ से ज्यादा Domestic Tourists आये हैं... विदेशियों की संख्या भी करोड़ों में है.


यह लोग आये होंगे, इन्होंने होटल धर्मशाला, homestay इस्तेमाल किये होंगे.. इन्होने काशी में खाना पीना किया होगा.. अलग अलग जगह घूमे फिरे होंगे... चाय समासे चाट मिठाई खायी होगी.... गोदौलिया से सामान, कपडे, गहने आदि खरीदे होंगे... गाड़ी किराये पर ली होंगी.. मंदिरों में गए होंगे.. घाट पर पूजा देखी होगी, फल फूल माला प्रसाद खरीदा होगा, नाव की सवारी की होगी... पान सुपारी खाई होगी.


इन 7-9 करोड़ (विदेशी भी जोड़े तो ) लोगों ने अगर काशी यात्रा में 2000 रूपए भी खर्च किये होंगे, तो समझिये राज्य सरकार को कितना राजस्व मिला होगा, और स्थानीय व्यापारियों, कामगारों को कितनी कमाई हुई होगी.


हमारे मंदिर हमेशा से ही राज्य की अर्थव्यवस्था से जुड़े रहे हैं... यह हमारे राज्यों और सरकारों के राजस्व का बड़ा स्त्रोत रहे हैं.. वहीं आम जनता के रोजगारों और कमाई का बड़ा साधन रहे हैं.


स्कूल और अस्पताल बनाना अच्छा है... लेकिन यह दोनों services होती हैं राज्य सरकारों के लिए... स्कूल और अस्पताल से सरकारें कमाई नहीं करती (private की बात नहीं हो रही ).... सरकारों को राजस्व बढ़ाने के लिए धार्मिक स्थल, इंफ्रास्ट्रक्चर, मनोरंजन के साधन जैसे उपक्रमों को बनाना ही चाहिए.... राजस्व और सर्व समाज का विकास वहीं से होता है.


और यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको Oxford या हावर्ड जाने की जरूरत नहीं है... सावन आने वाला है.. महाशिवरात्रि पर देख लीजियेगा, कैसे धर्म आधारित क्रिया हमारी स्थानीय अर्थव्यवस्था को सम्बल देती हैं.

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