अमेरिकी प्रतिबंधों का हटना

 अमेरिका भारत की परमाणु कम्पनियों पर से पोखरण.2 के 26 वर्षों बाद अब प्रतिबंध हटायेगा।

अमेरिका को अब भारत की शक्ति और सामर्थ्य का आभास हुआ होगा और भारत के रणनीतिक सहयोग की आवश्यकता अनुभव हुई है, तभी 26 वर्षों से चले आ रहे इन प्रतिबंधों को हटाने का निर्णय लिया है। 

पाकिस्तान, बर्मा, बाँग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल में सत्ता परिवर्तन कर के ताकत आजमा लेने के बाद, भारत के लोकसभा चुनावों में अपनी दखल दिखा लेने के बाद अमेरिका का यह निर्णय, अब अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। रूस से भारत के व्यापार सम्बन्धों के कारण अमेरिका ने भारत से न केवल अनेक बार नाराजगी जताया था, बल्कि अनेक रणनीतिक खेल भी खेल चुका है। भारत मेंअंदरूणी दखल देने में रिस्क और टकराव की स्थिति होने के कारण अमेरिका ने हमारे पड़ोसी देशों में दखल देकर भारत को झुकाने की चेष्टा की। लेकिन भारत ने अपनी ताकत और कमजोरी दोनों का ध्यान रखते हुए, जिस डिप्लोमेटिक संयम का परिचय दिया और अपने हितों की रक्षा की भरपूर चेष्टा की, उसके कारण सुपर पावर को कुछ तो सोचने पर मजबूर होना पड़ा है। सत्ता परिवर्तन एक विषय है, लेकिन रणनीतिक परिवर्तन दूसरा विषय है। तमाम कोशिशों के बाद भी उनके देश की सत्ता हमारे अनुकूल बदल गई, लेकिन हमारे देश की सत्ता उनके अनुकूल नहीं बदली। 

नेपथ्य के कारण कुछ भी रहे हों, लेकिन दृष्टिगोचर सत्य यही है। यह बातें अपने आप घटित हुई या अदृश्य शक्तियों के प्रभाव में बदली? लेकिन जो भी हुआ, उससे हमारे हित सधते दिखाई दे रहे हैं। मैं न तो किसी की हेरोईज्म की बात इसमें देख रहा हूँ और न ही भारत का दब्बूपन कहीं दिख रहा है। यह भारत का भाग्य है, ऋषियों का आशीर्वाद है, युवाओं का प्रताप है, जिसके कारण स्वतः ही भारत का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। भारत के उत्थान के लिए वैश्विक समीकरण अपने आप हर कदम पर भारत का पक्ष मजबूत कर रहे हैं। लेकिन भाग्य का साथ पाने के लिए भी, कभी धैर्य रखना पड़ता है और कभी पुरूषार्थ करना पड़ता है। और यह सब करने में भारत सक्षम है, सफलतापूर्वक कर भी रहा है।अन्यथा जो भारत पर 26 साल से प्रतिबंध लगाए बैठे थे, इतनी आसानी से ये प्रतिबंध नहीं हटाने वाले थे। प्रत्यक्ष दिख रहे लालच के कारण ही अमेरिका यह निर्णय लेने वाला है। अमेरिका ने आज तक कोई कदम किसी की भलाई के लिए नहीं उठाया, अमेरिका के सारे निर्णय स्व केन्द्रित होते हैं, संकुचित स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। अटल बिहारी बाजपेई के प्रधानमंत्री बनने के बाद मई 1998 में भारत ने एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में पोखरण परमाणु परीक्षण किया था, जिससे भड़के अमेरिका ने भारत की कई असैन्य परमाणु कंपनियों पर पाबंदियाँ लगा दी थीं, जिन्हें अब हटाया जाएगा। 

भारत की जिन संस्थाओं पर अमेरिका ने 1998 में प्रतिबन्ध लगाया था, उनकी सूचि निम्नवत है- 

1.भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, 

2.इंदिरा गाँधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, 

3.इंडियन रेयर अर्थ्स, 

4.न्यूक्लियर रिएक्टर्स आदि शामिल हैं।

सेमिकंडक्टर तकनीक पर भारत ने जो कदम बढ़ाया है, वह बहुत सफल होता हुआ दिखाई दे रहा है। चीन के द्वारा निर्मित सेमिकंडक्टर का उपयोग करने से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, जासूसी और इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी की चोरी भी होता है। सुरक्षा से जुड़े खतरे भी उत्पन्न होते हैं। इसीलिए भारत का सेमिकंडक्टर मार्केट उनके भविष्य का आधार भी है और लालच भी।

इस आलोक में यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के बहुत सारे पाकिस्तानी परमाणु कम्पनियों पर बीते महीने पाबंदी लगाया था। उनके मिसाईल प्रोग्राम पर भी अमेरिका ने रोक लगाया है। एक ऐसा मिसाल पाकिस्तान बना रहा था जिसकी रेंज में अमेरिका भी आता, उसपर रोक लगाई गई है। यह सब करना अमेरिका की मजबूरी है। भारत की महत्ता को स्वीकार करना और झुककर सेलेक्टेड विषयों पर सम्बन्ध बढ़ाने की कोशिश करना, यह उनकी मजबूरी है। अन्यथा अमेरिका के लिए खतरे कम नहीं हैं अब। इजराइल के ताजा वार के बाद बहुत कुछ बदल गया है और अभी भी बदल रहा है, अमेरिका के लिए।अमेरिका भारत से भविष्य में बड़े परमाणु समझौते की भी योजना बना रहा है। यह हम दोनों के लिए वीन-वीन गेम होने वाला है। हम इस बार्गेनिंग में बराबर के लाभ पर आगे बढ़ने वाले हैं। अभी और भी बहुत कुछ घटित होगा भविष्य में। 

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